तालिबान की धमकी

Last Updated 02 Nov 2021 04:03:34 AM IST

तालिबान खुद को बदलने के भले हजारों तर्क दे, मगर हकीकत में ऐसा होना नामुमकिन दिखता है।


तालिबान की धमकीTaliban threat

अफगानिस्तान में तालिबान को सत्ता संभाले ढाई महीने से ज्यादा हो गए हैं, किंतु उसका आचार-व्यवहार अभी भी कबीलाई, हिंसक और असंवेदनशील है। तालिबान शासन को मान्यता देने के सवाल पर दुनिया को उसने जिस भाषा में धमकाया है, वह यह बताने को काफी है कि ‘रस्सी जल गई मगर ऐंठन नहीं गई’।

तालिबान शासन को मान्यता नहीं देने पर बुरा परिणाम भुगतने की धमकी देना दरअसल उसकी छटपटाहट को ही परिलक्षित करता है। इससे यह पता चलता है कि उसे दुनिया के बाकी देशों की कितनी ज्यादा जरूरत है।

ठीक है कि किसी भी सरकार को मान्यता उस देश के नागरिकों का अधिकार होता है, किंतु इसके लिए गलत तरीके अपनाकर और बेहद बुरा अंजाम भुगतने की धमकी देना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। ज्ञातव्य है कि संबंध हमेशा अपनेपन की भावना और लचीले व्यवहार से प्रगाढ़ बनते हैं। इसके लिए न तो धमकी देने की आवश्यकता पड़ती है न हिंसक विचारों को प्रदर्शित करना पड़ता है।

लिहाजा तालिबान को भी अपने अतीत का चोला उतारना होगा। उसे दुनिया को यह भरोसा दिलाना होगा कि वह हिंसा का रास्ता त्याग चुका है। उसे अपने नागरिकों के दिलों में जगह बनाने के वास्ते कुछ रचनात्मक करना होगा। जब तक वह अपने नागरिकों के दिलोदिमाग से दहशत खत्म नहीं करेगा तब तक उसकी विसनीयता का कोई आधार नहीं बनेगा। उसके हिंसक अतीत की परछाई उसके वर्तमान को रोशन करने में बाधक बनी हुई है। शायद यही वजह है कि उसके परम मित्र पाकिस्तान और चीन तक ने उसकी सरकार को मान्यता नहीं दी है।

भारत भी अभी तक ‘वेट एंड वाच’ की रणनीति पर काम कर रही है। वह नई सरकार के कार्यों और गतिविधियों का मूल्यांकन करने के बाद ही तालिबान शासन को मान्यता देने के फैसले पर विचार करना चाहता है। भारत के मन में तालिबान शासन को लेकर अंदेशा है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों के लिए कर सकता है। कश्मीर में हाल में जिस तरह की ताबड़तोड़ आतंकी घटनाओं में इजाफा हुआ है, वह इस अंदेशे की पुष्टि करता है। लिहाजा विश्व के तमाम देशों को फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने की दरकार है।



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