धरती को तपने नहीं देंगे

Last Updated 02 Nov 2021 04:06:27 AM IST

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के नेता इटली के रोम में हुए जी 20 सम्मेलन में ठोस प्रगतिशील कदम उठाने से चूक गए।


धरती को तपने नहीं देंगे

सम्मेलन में सिर्फ बातें हुई, ठोस वादे नहीं हुए। 20 ताकतवर देश जिनकी तरफ दुनिया बड़ी उम्मीद से देख रही थी; कोई ऐसा कदम नहीं उठा पाए जो दुनिया को नई राह दिखाता। अब ये नेता ग्लासगो में कॉप 26 सम्मलेन में शिरकत करेंगे।

जी 20 नेताओं ने पृथ्वी के तापमान को सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने के लक्ष्य पर टिके रहने का वादा तो किया, लेकिन यह होगा कैसे इसका कोई मुसलसल खाका पेश नहीं किया। हालांकि यह जरूर कहा गया कि सदी के मध्य तक दुनिया को कार्बन मुक्त करने पर सहमति बन गई है यद्यपि कार्बन उत्सर्जन रोकने की कोई तिथि तय नहीं की गई है।

जी 20 नेताओं ने यह स्वीकार किया कि सम्मेलन के दौरान कोई खास प्रगति नहीं हो पाई। संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने जी 20 देशों के बीच कोई ठोस  सहमति ना बनने पर निराशा जाहिर की। उनका कहना था कि इस बात का स्वागत किया जा सकता है कि जी 20 ने वैश्विक हल को लेकर प्रतिबद्धता दोहराई है, लेकिन वह रोम से अधूरी इच्छाओं के साथ जा रहे हैं। इतना तो सुकून है कि ये अभी दफन नहीं हुई हैं। जी 20 देशों के नेता कोयले से बिजली बनाने को खत्म करने के बारे में कोई ठोस आश्वासन दने में विफल रहे।

इतना ही कहा गया कि नये कोयला बिजली संयंत्र बनाने से रोकने की भरपूर कोशिश करेंगे, लेकिन स्थानीय हालात के मद्देनजर फैसला किया जाएगा और उसी हिसाब से पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल करने के बारे में निर्णय होंगे। जी 20 का यह बयान लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बड़ी बाधा है क्योंकि भारत जैसे कई देश कह चुके हैं कि वे कोयले का इस्तेमाल बिल्कुल बंद नहीं करेंगे। रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जीन पिंग तो सम्मेलन में प्रतिबद्धताएं दिखाने तक नहीं आए कि पेरिस समझौते से डिगा नहीं जाएगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के अनुसार 20 अर्थव्यवस्थाओं का यह कहना कि पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस  के लक्ष्य पर वे सहमत हैं, बहुत अच्छा निर्णय है। अब सारी उम्मीदें ग्लास्गो में हो रहे कॉप 26 सम्मेलन पर टिक गई हैं कि कैसे तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने के लक्ष्य को जिंदा रखा जाएगा और उत्सर्जन में कमी लाने के लिए दी जाने वाली वित्तीय मदद कितनी दी जाएगी। भारत और चीन को ज्यादा जिम्मेदारी निभानी होगी क्योंकि तापीय प्रोजेक्ट को लेकर वैश्विक तौर पर उनकी असहमति दिखती है।



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