आश्वस्ति का टीका
कोरोना टीकाकरण के मामले में भारत ने 100 करोड़ का ऐतिहासिक मुकाम हासिल कर लिया है।
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फिलहाल, भारत की 18+ आबादी का 74.9 फीसद कम-से-कम एक डोज ले चुका है और 18+ आबादी का 30.9 फीसद पूरी तरह टीकाकृत हो चुका है। इन आंकड़ों का रिश्ता सिर्फ और सिर्फ सेहत से नहीं है, बल्कि इन आंकड़ों का रिश्ता देश की अर्थव्यवस्था से भी है। इधर खबरें आ रही हैं कि हवाई जहाज और एयरपोर्ट भरे-भरे से हो गए हैं। भीड़ फिर से जुटने लगी है।
लोग घरों से बाहर निकल रहे हैं, दूसरे शहर, दूसरे देश जा रहे हैं। इस आवाजाही के पीछे एक हिम्मत और आश्वस्ति है, वह है टीकाकरण की आश्वस्ति। जिन लोगों को दोनों ही खुराक लग चुकी हैं, टीके की, वो जाहिर है बहुत आश्वस्त हैं और वो इसलिए दूसरे शहर का पर्यटन भी कर रहे हैं और शॉपिंग मॉल में भी जा रहे हैं। शॉपिंग मॉल में जब वो जाएंगे, तो जाहिर है वहां के रेस्टोरेंटों का कारोबार भी बेहतर होगा।
पर्यटन के लिए जिस शहर में जाएंगे, उस शहर के होटल वाले, बस वाले, ऑटो वाले भी कुछ कमा जाएंगे। इस तरह से सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को एक नया सहारा मिलेगा, जो कोरोना के कहर में डूबी पड़ी थी।
टीकाकरण की शुरुआती रफ्तार को देखकर इस तरह की आशंकाएं थीं कि क्या भारत टीकाकरण के मामले में ठोस प्रगति दिखा पाएगा। क्या टीके उपलब्धता को लेकर आश्वस्त हुआ जा सकता है। भारत का सिस्टम चाहे जैसा हो, ढीला भ्रष्ट पर यह तो मानना पड़ेगा कि अगर शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व दृढ़ इच्छाशक्ति दिखा दे, तो परिणाम आ ही जाते हैं। जैसा कि टीकाकरण के मामले में दिख रहा है। 100 करोड़ खुराकों का आंकड़ा छोटा आंकड़ा नहीं है।
इसका मतलब है कि ऑस्ट्रेलिया के आकार के देश को पच्चीस बार पूरी तरह से टीकाकृत कर दिया गया है। 100 करोड़ खुराकों के आंकड़े को पार करने का क्षण दरअसल, गर्व का क्षण है। हर भारतवासी को इस पर गर्व होना चाहिए।
कोरोना से हुई मौतों पर शोक व्यक्त करने का भी मौका है पर यह तथ्य भी रेखांकित करने का मौका है कि अगर कोरोना के टीकों की उपलब्धता की समस्या होती तो भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी खौफ में जी रहा होता। खौफ से इंसानी जिंदगी तबाह होती है, और अर्थव्यवस्था भी। इस बात को रेखांकित किया ही जाना चाहिए। जो भी हो, यह कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए कि सावधानी की दरकार अब भी है।
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