भारत-चीन में तनातनी जारी
तमाम कूटनीतिक और रणनीतिक कोशिशों के बावजूद भारत और चीन के बीच तनाव बना रहना वाकई चिंता की बात है।
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पिछले वर्ष जून महीने से लेकर अभी तक सीमा पर चीन से भारत की अदावत जारी है। इस दौरान दोनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारियों की वार्ता भी बेनतीजा रही है।
चीन अपनी फितरत के मुताबिक कभी पूर्वी लद्दाख, कभी अरुणाचल प्रदेश तो कभी उत्तराखंड से लगती सीमा पर उद्दंडता से पेश आता रहता है। ताजा घटनाक्रम के तहत भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की करतूतों के मद्देनजर विभानभेदी तोपों को तैनात किया है। आशय साफ है कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनातनी चरम पर है और मोर्चाबंदी तेज हो गई है।
अत्याधुनिक एल 70 विभानभेदी तोपों की तैनाती एलएसी के नजदीक पहाड़ों पर की गई है। इसके अलावा, एम-777 हावित्जर तोपों और बोफोर्स तोपों को भी सीमा पर तैनाता कर दिया गया है। इन सब हथियारों को सीमा रेखा पर रखवाए जाने का सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि भारत और चीन के बीच शांति के लिए जो कुछ उपाय तलाशे गए; वह बेमानी सिद्ध हुए। चीन तो इस फिराक में है कि कैसे भारत को इन्हीं सब मामलों में उलझा कर रखा जाए। सर्दी शुरू होने से पहले चीन की ऐसी तैयारियों को समझना रॉकेट साइंस तो बिल्कुल नहीं है।
चीन को भारतीय सैनिकों की जीवटता, निडरता और वीरता का बखूबी भान है। वह ऐसी हरकत भारत को सिर्फ परेशान करने के लिए करता रहा है। उसे पिछले साल पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील इलाके में भारतीय सैनिकों ने जिस तरह से जवाब दिया, उसे वह लंबे वक्त तक याद रखेगा। दरअसल, क्वाड (चतुभरुज गुट) में जिस तरह से चीन को शामिल नहीं किया गया, उसके लिए वह भारत को ही दोषी मानता है। उसकी दूसरी खीझ है कि सी-पेक में भारत के शामिल नहीं होने और उसका विरोध करने से भी चीन भारत के प्रति गलत मंशा रखता है।
चीन की विस्तारवादी नीति का वैस्विक मंच पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिना नाम लिए जिक्र किया। स्वाभाविक है कि चीन को यह सब बातें चुभती होंगी कि एक मुल्क जो कभी आवाज नहीं उठाता था, आज हमसे बराबरी के स्तर पर मोर्चा ले रहा है। शायद चीन यह भूल गया है कि भारत अब बदला हुआ देश है, जिसे बिना वजह छेड़ने का अंजाम बुरा होता है।
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