सुधार की महती जरूरत
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण ने देश में न्यायिक बुनियादी ढांचे की दुर्दशा पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि 20 प्रतिशत से ज्यादा न्यायिक अधिकारियों के पास बैठने के लिए अदालत कक्ष तक नहीं हैं।
![]() भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमण |
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और कानून मंत्री किरन रिजिजू के साथ बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद बेंच की एनेक्स बिल्डिंग के बी और सी विंग का उद्घाटन करते हुए सीजेआई ने यह बात कही। कहा कि न्यायिक बुनियादी ढांचे का सुधार और रखरखाव अनियोजित और तदर्थ तरीके से किया जा रहा है।
सीजेआई ने मंच पर मौजूद कानून मंत्री से आग्रह किया कि राष्ट्रीय न्यायिक ढांचागत सुविधा प्राधिकरण की स्थापना संबंधी प्रस्ताव संसद के शीतकालीन सत्र में ही लाना सुनिश्चित करें। बहरहाल, अदालतों में सुविधागत हालात विचलित करने वाले हैं। न्याय के मंदिर कहे जाने वाले न्यायालयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी और जर्जर ढांचागत स्थितियां एक लोकतांत्रिक देश के लिए दुखद स्थिति कही जाएगी। कहना न होगा कि इन हालात में अदालती कामकाज कारगर तरीके से नहीं चल पाता।
समय आ गया है कि हम उस मानसिकता से जल्द से जल्द छुटकारा पा लें जिसके चलते आजादी के बाद से ही अदालतों में बुनियादी सुविधाएं नाकाफी बनी हुई हैं। पांच फीसद अदालती परिसरों में ही बुनियादी चिकित्सा सहायता की व्यवस्था स्वीकार्य नहीं है। महिलाओं के लिए अलग से शौचालय 26 फीसद अदालतों में नहीं हैं। सोलह फीसद अदालती परिसर तो ऐसे हैं, जहां शौचालय की सुविधा सिरे से नदारद है।
46 फीसद अदालतों में साफ पानी की सुविधा नहीं है। कोरोना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई के महत्त्व को अच्छे से रेखांकित किया है, लेकिन यह सुविधा 27 फीसद अदालत कक्षों में ही उपलब्ध है। और भी खामियों और कमियों की तरफ सीजेआई ने ध्यान दिलाया है। सीजेआई ने 2018 में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध के हवाले से बताया कि समय से न्याय देने में विफलता से जीडीपी में 9 फीसद का घाटा होता है। आर्थिक विकास के इस महत्त्वपूर्ण पहलू का संज्ञान लिया जाना जरूरी है। बहरहाल, इस मसले पर कानून मंत्री का सकारात्मक रुख आश्वस्त करता है कि न्यायिक क्षेत्र अब अनदेखा नहीं रहने पाएगा।
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