एयर इंडिया की घर वापसी
उन्नीस सौ बत्तीस में जहांगीर रतनजी दादा भाई (जेआरडी टाटा) द्वारा शुरू की गई विमान सेवा एयर इंडिया की अड़सठ साल बाद घर वापसी हो गई।
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एयर इंडिया की सौ फीसद स्वामित्व प्राप्त कर टाटा समूह काफी प्रसन्नचित्त है क्योंकि समूह का इस विमानन कंपनी से विशेष भावनात्मक लगाव रहा है। इसके साथ ही एयर इंडिया की सहायक कंपनियां को भी बेचने की सरकार की मंशा है। तीस के दशक में एयर इंडिया को टाटा एयरलाइंस के नाम से जाना जाता था।
द्वितीय वि युद्ध के दौरान विमान सेवाएं रोक दी गई थीं। युद्ध की समाप्ति के बाद जब विमान सेवाएं प्रारंभ की गई तो 1946 में इसका नाम एयर इंडिया कर दिया गया। 1953 में सरकार ने एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। केंद्र सरकार ने पिछले शुक्रवार को एयर इंडिया के लिए टाटा संस की सहायक कंपनी टैलेस को सबसे अधिक बोली लगाने वाला घोषित किया। पिछले बीस वर्षो में पहली किसी बड़ी सार्वजनिक कंपनी का निजीकरण हुआ है।
केंद्र सरकार कर्ज में डूबी इस विमानन कंपनी को वर्षो से बेचने की योजना बना रही थी। दो हजार अठारह में भी सरकार ने एयर इंडिया को बेचने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उस समय सरकार इस कंपनी की 76 फीसद हिस्सेदारी बेच रही थी। सरकार के इस प्रस्ताव पर तब किसी निजी कंपनी ने अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
सरकार एयर इंडिया को कर्ज से उबारने के लिए समय-समय पर आर्थिक मदद की, लेकिन कंपनी का प्रबंधन इसे पटरी पर लाने में विफल रहा। अब इस मुद्दे पर प्राय: आम सहमति बन गई है कि सरकार घाटे में चलने वाली किसी भी सार्वजनिक कंपनी या उद्योग को उबारने के लिए आर्थिक मदद नहीं करेगी।
यह निर्णय उचित भी है। इस धनराशि को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य विकास योजनाओं पर भी खर्च किया जा सकता है। टाटा समूह विस्तारा और एयर इंडिया नामक दो विमान सेवाओं का परिचालन कर रहा है।
अब एयर इंडिया का स्वामित्व मिल जाने के बाद टाटा समूह की विमानन कंपनी को और मजबूती मिलेगी। लेकिन बड़ा और अहम सवाल यह है कि अगर निजी कंपनी कर्ज में फंसे किसी उद्योग को मुनाफे में ला सकती है तो इसका अर्थ साफ है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के प्रबंधन में कमी है। सरकार को इस ओर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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