दुर्भाग्यपूर्ण घटना
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत से प्रदेश की सियासत तेज हो गई है।
दुर्भाग्यपूर्ण घटना |
यह घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और इसकी चाहे जितनी भी निंदा की जाए कम है, लेकिन यह विडंबना ही है कि भारत के राजनीतिक दल इस तरह की दुखद और त्रासदीपूर्ण घटनाओं पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आते। प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं।
इस कारण कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा और आम आदमी पार्टी इस मुद्दे पर प्रदेश की भाजपा सरकार को घेरने में जुट गए थे। प्रदेश की सरकार ने इस घटना की नजाकत को समझते हुए बहुत संयम से काम लिया और त्वरित कार्रवाई करते हुए किसान संगठनों की सभी मांगों को स्वीकार करके विपक्ष के मंसूबे पर पानी फेर दिया।
सरकार की घोषणा के मुताबिक चार किसानों के परिवारों को 45-45 लाख रुपये मुआवजे के साथ ही परिवार के एक सदस्य को योग्यतानुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी। घायलों को 10-10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी तथा उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हिंसा की जांच करेंगे।
उल्लेखनीय बात यह है कि लखीमपुर में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की मौजूदगी में प्रदेश के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने यह घोषणा की, लेकिन दूसरी ओर महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि तीन नये कृषि कानूनों को लेकर राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले 10 महीनों से चल रहे किसानों के धरना-प्रदर्शन को खत्म करने की दिशा में केंद्र सरकार नये सिरे से कोई पहल करती है या नहीं।
किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता का कोई परिणाम सामने नहीं आया। इससे लगता है कि दोनों पक्षों का रुख अड़ियल है। अगर इस मामले में जारी गतिरोध को खत्म करना है तो किसानों को तीनों कानूनों को वापस लेने की अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए।
दूसरी ओर सरकार को भी किसानों के अन्य प्रमुख मांगों को स्वीकार कर यह संदेश देना चाहिए कि सरकार किसान विरोधी नहीं है। सर्वोच्च अदालत तक यह मामला पहुंचा है। शीर्ष अदालत में किसान संगठनों ने कृषि कानूनों की वैधानिकता को चुनौती दी है। इस संबंध में अदालत का साफ रुख है कि किसानों को अदालत का फैसला आने तक अपना आंदोलन रोक देना चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए कि किसान संगठन शीर्ष अदालत की राय को गंभीरता से लेंगे।
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