नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता

Last Updated 26 Jan 2021 02:48:44 AM IST

नेपाल के तीन कद्दावर नेताओं के.पी. शर्मा ओली, पुष्प दहल कमल प्रचंड और माधव कुमार नेपाल के बीच राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा की लड़ाई ने इस हिमालयी राज्य को राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में धकेल दिया है।


नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता

बीते वर्ष 22 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड के धड़े के नेता माधव कुमार नेपाल ने ओली को पार्टी के अध्यक्ष के पद से हटा दिया था। अब इसी धड़े ने रविवार को ओली को सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया। प्रचंड धड़े ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के लिए ओली से तीन दिन में स्पष्टीकरण देने को कहा था, लेकिन ओली की ओर से कोई जवाब नहीं आने के बाद उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निकालने का फैसला किया गया। जाहिर है इस घटनाक्रम के बाद नेपाल की सत्तारूढ़ पार्टी में दो-फाड़ हो चुका है।

लोगों को याद होगा कि 17 मई 2018 को देश की सबसे बड़ी दो कम्युनिस्ट पार्टियों-नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के बीच हुए विलय के बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ था। राजनीतिक विश्लेषकों ने इस विलय को नेपाल की राजनीति में एक नये युग के सूत्रपात के रूप में देखा था। ऐसा नहीं था कि यह विलय जल्दबाजी और बिना सोच-विचार के हुआ था। वास्तव में यह विलय विचारधारात्मक और व्यावहारिक सूझबूझ के साथ पार्टी को एकजुट करने पर विचार-विमर्श और महीनों तक चली बहस के बाद हुई थी।

यह अपेक्षा की गई थी कि इस विलय के बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी राष्ट्रवाद और लोकतंत्र को मजबूत करेगा तथा देश में नये आर्थिक बदलाव के लिए काम करेगा। उम्मीद यह भी की गई थी कि सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार पूरे 5 साल के अपने कार्यकाल को पूरा करेगी और इस तरह नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का जोर खत्म होगा, लेकिन हाल की घटनाओं से लोगों की इस उम्मीद पर पानी फिर गया। इसके लिए वहां का राजनीतिक नेतृत्व ही एकमात्र जिम्मेदार है। 1990 में नेपाल में पहली बार संसदीय लोकतंत्र की स्थापना हुई थी, लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि तब से अब तक कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है।



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