निराशाजनक आंकड़े

Last Updated 19 Jan 2021 04:39:00 AM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान जताए जाने और राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा भी अर्थव्यवस्था में 7.7 प्रतिशत की गिरावट आने की बात कहे जाने के बाद अब देश के कुछ अर्थशास्त्रियों ने गिरावट का आंकड़ा इन आंकड़ों से कहीं ज्यादा निराशाजनक रहने की बात कही गई है।


निराशाजनक आंकड़े

कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो भारतीय अर्थव्यवस्था के 25 प्रतिशत तक लुढ़क जाने की बात कह दी है। उनका कहना है कि सरकार ने जुलाई-सितम्बर की तिमाहियों के लिए जीडीपी के जो दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं, उनमें भी कहा गया है कि आरबीआई और एनएसओ द्वारा दिए गए आंकड़ों में और संशोधन हो सकता है। अनेक अर्थशास्त्री कह चुके हैं कि भारत का राजकोषीय घाटा पिछले साल के मुकाबले अधिक रहेगा।

साथ ही, यह भी जतलाया जा चुका है कि राज्यों का घाटा भी इस साल ज्यादा रहने वाला है। और विनिवेश राजस्व भी कम रहेगा। कर तथा गैर-कर राजस्व में भी कमी आएगी। मजे की बात यह है कि सरकार दावा कर रही है कि अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है, लेकिन चालू वर्ष में अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आने का अंदेशा सरकार के दावे के विपरीत है यानी देश की आर्थिक वृद्धि में उतनी तेजी से सुधार नहीं हो रहा है, जैसा कि सरकार दिखा रही है। ऑटोमोबाइल्स जैसे कुछ क्षेत्रों में स्थिति उत्साहजनक है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में उतना सुधार नहीं हो पाया है, जितना होना चाहिए था।

सेवा क्षेत्र के भी कुछ महत्त्वपूर्ण हिस्सों में ज्यादा सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। चालू वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बड़ी गिरावट से बजट अनुमान पहले ही पूरी तरह दायरे से बाहर निकल गए हैं। ऐसे में बजट को दुरुस्त करना होगा। बेशक, सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जोरदार प्रयास कर रही है। कोशिश कर रही है कि कोविड-19 के कारण शिथिल पड़ी आर्थिक गतिविधियों में तेजी से सुधार आए। दरअसल, अर्थव्यवस्था का पुनरोद्धार कई कारकों पर निर्भर करता है। टीकाकरण भी एक कारक है। अभियान सफल होने पर लोग जल्द ही अपने काम पर लौट सकेंगे और अर्थव्यवस्था की स्थिति उतनी ही तेजी से सामान्य हो सकेगी।



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