उफान पर राजनीति

Last Updated 11 Jan 2021 05:22:23 AM IST

बंगाल के राज्यपाल, जगदीप धनखड़ ने शनिवार को नई-दिल्ली में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।


उफान पर राजनीति

इस मुलाकात के बाद उन्होंने प्रेस को यह बताना जरूरी समझा कि विधानसभा चुनाव को देखते हुए, राज्य में सुरक्षा के हालात चिंताजनक हैं और कानून व व्यवस्था को संभालने में राज्य सरकार की भूमिका पर उनके सवाल हैं। बेशक, धनखड़ और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच शुरू से ही जैसा छत्तीस का आंकड़ा रहा है, उसे देखते हुए इससे शायद ही किसी को अचरज होगा। वास्तव में, एनडीए के सत्ता में आने के बाद से जिस तरह से राज्यपाल पद पर न सिर्फ सत्ताधारी पार्टी के सक्रिय नेताओं की नियुक्तियां की गई हैं बल्कि विपक्ष-शासित राज्यों में ये राज्यपाल जैसे विपक्ष जैसी भूमिका में नजर आए हैं, उसके बाद शायद यह याद दिलाना निर्थक है कि यह राज्यपाल के पद की गरिमा के अनुरूप नहीं है। पर समस्या इससे गहरी है।

बेशक, यह संयोग ही नहीं है कि धनखड़ की यह बयानबाजी ठीक उसी समय और तेज हो गई है, जब भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनाव के अपने मुख्य मुद्दों के तौर पर, ठीक इन्हीं मुद्दों पर वर्तमान तृणमूल सरकार के खिलाफ अपने प्रचार की गर्मी बहुत बढ़ा दी है। बेशक, बंगाल में कानून-व्यवस्था और नागरिकों से लेकर राजनीतिक विरोधियों तक की सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक है, लेकिन यह स्थिति पांच साल पहले, एनडीए के राज में हुए विधानसभा के पिछले चुनाव के समय और वास्तव में 2014 के आम चुनाव के समय भी, उतनी ही चिंताजनक थी, लेकिन तब न राज्यपाल, न केंद्रीय गृहमंत्री और न देश की सत्ताधारी पार्टी और उससे प्रभावित मीडिया, किसी को इसकी खास परवाह नहीं थी, क्योंकि तब तक वे ममता बनर्जी को खुश करने की ही कोशिशों में लगे थे। हां! 2019 के आम चुनाव में भाजपा के राज्य की 42 में से 18 सीटें जीतने के बाद, अब जबकि भाजपा खुद को विधानसभा चुनाव में तृणमूल के खिलाफ मुख्य चुनौती के रूप में स्थापित करने में लगी है, उक्त सभी सत्ताएं उसकी तरफ से खेलने के लिए मैदान में कूद पड़ी हैं। खास खेल है, चुनाव को द्विध्रुवीय बनाने के लिए, वामपंथ-कांग्रेस गठबंधन की तीसरी ताकत को, मीडिया हेडलाइनों के खेल के जरिए, पहले ही मैदान से बाहर कर देने का। काम करे या नहीं करे, यह जनतंत्र के लिए शुभ लक्षण नहीं है।



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