भारत की फिसलन
भारत मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स), 2020 में एक स्थान फिसला है।
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जाते साल 2020 में 189 देशों की इस सूची में भारत फिसल कर 131वें स्थान पर आ गया है। सूची संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) हर साल जारी करता है। इस बार जारी रिपोर्ट मानव विकास सूचकांक की तीसवीं रिपोर्ट है। कोरोना महामारी के चलते इसे वर्चुअल मंच पर जारी किया गया। पिछले साल की सूची में नाव्रे शीर्ष स्थान पर रहा था। इस बार भी वह यथावत रहा। उसके बाद क्रमानुसार आयरलैंड, स्विटजरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड रहे। इस रिपोर्ट में मानवीय प्रगति को मापा जाता है, लेकिन इस बार नये मानक भी इसमें शामिल किए गए। अभी तक स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का आकलन करके रिपोर्ट तैयार की जाती रही है।
इस लिहाज से इस बार प्रायोगिक तौर पर शुरू किया गया नया वैश्विक सूचकांक-पीएचडीआई-मानव प्रगति को मापने का नया तरीका है, जिसमें गरीबी और असमानता से निपटने की कोशिशों के दौरान सुनिश्चित किया गया है कि इससे पृथ्वी और पर्यावरण पर दबाव न पड़े। इसके लिए राष्ट्रों के स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर का आकलन करने वाले मानव विकास सूचकांक मापने को मानकों में दो और तत्व शामिल किए गए हैं। ये हैं-देश का कार्बन उत्सर्जन और मैटीरियल फुटप्रिंट। इस बार भूटान 129वें स्थान पर रहा जबकि बांग्लादेश 133वें, नेपाल 142वें और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा। भारत में यूएनडीपी की स्थायी प्रतिनिधि शोको के मुताबिक, ‘यह रिपोर्ट एकदम सही समय पर आई है।
पिछले सप्ताह ही जलवायु महत्त्वाकांक्षा सम्मेलन संपन्न हुआ है, जिसमें शामिल देशों ने अपने कार्बन-फुटप्रिंट घटाने के लिए अपनी प्रतिबद्धताएं जताई हैं। अगर हम साथ मिलकर काम करें तो यकीन पृथ्वी को नष्ट किए बिना प्रत्येक राष्ट्र के लिए मानव विकास में वृद्धि संभव है यानी लंबी आयु, अधिक बेहतर शिक्षा और उच्च जीवन स्तर आदि’। कह सकते हैं कि इस वर्ष जारी मानव विकास सूचकांक संबंधी रिपोर्ट एक बेहद महत्त्वपूर्ण मुद्दा उजागर करती है। यह मुद्दा काफी लंबे समय से चिंता का सबब बना हुआ था। यह रिपोर्ट मानव विकास की नये सिरे से व्याख्या कर रही है। उन समाधान के साथ जिनसे उत्सर्जन में कम से कम 37 फीसद तक कमी आ सकेगी।
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