समय रहते कदम
लक्ष्मी विलास बैंक को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक ने जो कदम उठाये हैं, उनसे बैंक के जमाधारकों को थोड़ी असुविधा तो हुई है, पर कुल मिलाकर रिजर्व बैंक का रिकार्ड देखकर यह माना जा सकता है कि जमाधारकों की रकम सुरक्षित है।
समय रहते कदम |
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक को डीबीएस बैंक के साथ विलय की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इससे पहले रिजर्व बैंक ने लक्ष्मी विलास बैंक के बारे में यह राय व्यक्त की थी-‘लक्ष्मी विलास बैंक लिमिटेड की आर्थिक स्थिति में लगातार गिरावट हुई है। बीते तीन साल से भी अधिक समय से बैंक को लगातार घाटा हो रहा है। इससे इसकी नेटवर्थ घटी है।’ यानी लक्ष्मी विलास बैंक के कामकाज के कई समस्याएं सामने आ रही थीं। लक्ष्मी विलास बैंक से जमा पैसा निकालने की सीमा तय कर दी है। संक्षेप में जमाधारकों को अपनी रकम निकालने में अड़चनों का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले वर्ष इसी तरह के कदम पीएमसी कोआपरेटिव बैंक को लेकर उठाये गये थे। कुल मिलाकर रिजर्व बैंक की चिंता यह है कि बैंक डूबे नहीं इसलिए इसका विलय डीबीएस बैंक के साथ कराने का फैसला लिया गया है। डीबीएस बैंक का ताल्लुक सिंगापुर से है। रिजर्व बैंक ने स्वाभाविक तौर पर विलय के लिए किसी भारतीय सरकारी बैंक को नहीं चुना इसकी वजह भी समझी जा सकती है। भारतीय सरकारी बैंक पूंजी के संकट से जूझ रहे हैं। डीबीएस बैंक पूंजी डालकर बैंक को बचाएगा, ऐसा माना जा सकता है। लक्ष्मी विलास बैंक के कुछ शेयरधारकों ने रिजर्व बैंक के फैसले पर प्रश्न उठाये हैं।
पर मूल मसला है कि किसी बैंक में सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण हित उसके जमाकर्ताओं के ही होते हैं। एक और सवाल यह उठ रहा है कि क्यों भारतीय बैंक को विदेशी बैंक से जोड़ दिया गया है। पर मूल मसला यह है कि डीबीएस बैंक पूरे तौर पर भारत में ही काम कर रहा है और रिजर्व बैंक के नियम कायदों के तहत ही काम कर रहा है इसलिए देशी और विदेशी का सवाल अप्रासंगिक हो जाता है। किसी बैंक को बचाने के लिए अगर विदेशी निवेश आ रहा है, तो उस पर आपत्ति उठाना उचित नहीं है। समय रहते ही यह काम हो, तो बेहतर है और रिजर्व बैंक ने समय रहते ही बैंक को बचाया है। अपेक्षा है कि पूरी प्रक्रिया में गति लाई जाए ताकि जमाधारकों की परेशानियां न्यूनतम की जा सकें।
Tweet |