प्रदूषण चरम पर
जैसी आशंका थी, दीपावली के बाद के दिन जहरीली हवा ने हर किसी को हलकान किए रखा। दीपावली के दिन पटाखे जलाए जाने के कारण प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच गया।
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पूरे उत्तर भारत में दमघोंटू धुंध की मोटी चादर पसर गई। कई जगहों पर प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुंच गया। हालांकि दिल्ली और एनसीआर में हवा की गुणवत्ता पहले से खराब थी, लेकिन दीपावली के दिन जमकर लोगों ने पटाखे दागे। जबकि सर्वोच्च अदालत, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) और दिल्ली सरकार ने हर तरह के पटाखों की बिक्री और उसे जलाने पर पाबंदी लगा रखी थी। पिछले साल की तुलना में इस बार ज्यादा प्रदूषण देखा गया। सवाल उठता है कि जब पटाखों की बिक्री पर सख्त रोक लगाई गई थी तो यह बहुतायत में लोगों के सामने कैसे पहुंचा? दूसरी अहम बात यह कि तमाम उपायों और सख्ती के बावजूद जनता ने बिना पर्यावरण की परवाह किए पटाखे क्यों दागे और इसकी रोकथाम के लिए प्रशासनिक स्तर पर क्या कार्रवाई की गई? वैसे पुलिस ने दिल्ली में पटाखा जलाने के कुल 1206 मामले दर्ज किए गए वहीं 850 लोगों को दबोचा गया।
एक तरह से देखा जाए तो आमजन में प्रदूषण को लेकर जो संवेदनशीलता दिखनी चाहिए, उसका नितांत अभाव दिखा। पर्यावरण की महत्ता और प्रदूषण के दुष्प्रभाव के बारे में अधिकांश लोग जागरूक नहीं हैं। वहीं कई बार यह देखा गया है कि शिक्षित लोग नियमों की परवाह नहीं करते हैं। आतिशबाजी चलाने में भी यही तबका ज्यादा आगे रहता है। इस आदत को बदलना ही होगा। प्रदूषण के खिलाफ बड़ी जीत तभी होगी जब आमजन पर्यावरण के महत्त्व को समझेगा। दरअसल, यह सबकुछ मानवीय व्यवहार और अनुशासन से सुधरेगा।
बिना जनता की सहभागिता के हम प्रदूषण के खिलाफ जंग नहीं जीत सकते। चुनांचे, सरकार को नये सिरे से योजना बनानी होगी। ऐन वक्त पर पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है। हर किसी की दिक्कतों को समझ कर उनका समाधान ढूंढना सरकार की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। चोरी-छुपे पटाखा बेचने वालों और पराली जलाने वालों पर नजर रखने के लिए अलग से टास्क फोर्स बनाने की भी आवश्यकता है। जब तक कारगर कदम नहीं उठाए जाएंगे, तब तक गैस चेंबर में रहना हमारी मजबूरी होगी।
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