गुणवत्ता के लिए भी वोकल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘मन की बात’ की 70वीं कड़ी में कहा कि त्योहार की खरीदारी में ‘वोकल फॉर लोकल’ का संकल्प याद रखें।
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बाजार में सामान खरीदते समय हमें स्थानीय उत्पादों को प्राथमिकता देनी है। मोदी का ‘वोकल फॉर लोकल’ या स्थानीय के लिए समर्थन का नारा निश्चय ही भावनात्मक अपील रखता है। पर इसी के साथ कुछ समय पहले जारी एक और आंकड़े को देखना चाहिए। एक चाइनीज मोबाइल कंपनी ने एक हफ्ते में पचास लाख फोन बेच लिये। चाइनीज कंपनी के मोबाइलों की भारतीय स्मार्ट फोन में हिस्सेदारी सत्तर प्रतिशत से ज्यादा है। प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल’ के संदेश को याद रखते हुए भी भारतीय उपभोक्ता चीनी फोन की ओर क्यों मुड़ जाता है। यह सवाल यहां के उद्यमियों को खुद से पूछना होगा। लघु स्तरीय कारोबार के मामले में भारत चीनी या किसी भी देश के उत्पादों को चुनौती देने में सक्षम है। मास्क की बात हो या हैंडीक्राफ्ट की बात हो, भारतीय स्वदेशी ब्रांड निश्चय ही किसी को भी चुनौती देने में सक्षम हैं। पर ऑटोमोबाइल बाजार और मोबाइल बाजार में ग्राहक अगर लोकल होना भी चाहे, तो उसके सामने विकल्प बहुत सीमित हैं। यह माना जाना चाहिए कि मोबाइल फोन के भारतीय ब्रांडों का काम असंतोषजनक रहा है।
यह नहीं होना चाहिए कि गुणवत्ताविहीनता को देशभक्तिके परदे में ठेल दिया जाए। स्वदेशी ऐसा स्वदेशी होना चाहिए देश में भी उसकी धूम मचे और दुनिया भर के बाजारों में कीमत और गुणवत्ता का लोहा मनवा ले। तब ही लोकल स्वदेशी की बात सार्थक है। भावनात्मक अपील में घटिया माल चलाने की मानसिकता दूषित है और देश के उद्योगों और अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाली ही है। इस देश में उद्यमियों की एक लॉबी इस तरह की रही है कि जो गुणवत्ता में निवेश से कतराती रही है और खुद को प्रतिस्पर्धा से बचाये रखने के लिए स्वदेशी की माला का जाप करती रही है। प्रधानमंत्री के आह्वान का सार्थक आशय यह है कि गुणवत्तापूर्ण स्वदेशी साज-सामान के प्रति हमारा आग्रह होना ही चाहे। भारतीय ग्राहक अब परिपक्व हो रहा है, उसे गुणवत्ता और मूल्य के स्तर पर जहां बेहतर उत्पाद मिलते हैं, वो वहीं चला जाता है। उद्यमियों को ऑटोमोबाइल और मोबाइल में सार्थक स्वदेशी चयन के अवसर प्रदान करने चाहिए, यह अवसर भी है और चुनौती भी।
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