बलात्कार के विरुद्ध

Last Updated 13 Oct 2020 01:10:41 AM IST

गृह मंत्रालय ने अपराधों विशेषकर महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के संबंध में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिए एडवाइजरी जारी की है।


बलात्कार के विरुद्ध

इतमें कानून के विभिन्न प्रावधानों का हवाला देते हुए राज्यों से कहा गया है कि वे इनका कड़ाई से अनुपालन कराएं। गृह मंत्रालय ने कहा है कि दुष्कर्म की शिकायत पर निश्चित रूप से एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए और ऐसे मामलों में जांच दो महीने के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। ऐसे पुलिसकर्मियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए जो जांच प्रक्रिया को बाधित करते हैं। वास्तव में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के मामलों में गृह मंत्रालय समय-समय पर इस तरह की एडवाइजरी करता रहता है। हाथरस कांड के बाद उसने फिर से एडवाइजरी जारी की है।

इन दिनों हाथरस कांड को लेकर राजनीति अपने चरम पर है। विपक्षी पार्टियां इस मामले को लेकर योगी आदित्यनाथ की सरकार को कठघरे में खड़ी कर रही है। प्रदेश सरकार की मांग पर सीबीआई इस कांड की जांच कर रही है। वस्तुत: महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मामलों में समस्या कानून में नहीं कानून के अनुपालन और क्रियान्वयन में है। महिला अपराधों के संबंध में जो कानून है वे पर्याप्त तौर पर कठोर हैं। बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए पॉक्सो एक्ट के लागू होने के बाद कानून की कठोरता और बढ़ गई है, लेकिन वास्तविक समस्या कानून को लागू करने वाली व्यवस्था और भारतीय समाज की विभिन्न दुष्प्रवृत्तियों की है।

जब तक महिलाओं के संबंध में व्यापक सामाजिक जागरूकता नहीं आएगी और सामाजिक विसंगतियों को दूर कर समाज व्यवस्था को महिला सुरक्षा के अनुकूल नहीं बनाया जाएगा तथा जब तक पुलिस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया जाएगा और पुलिस को राजनीतिक नियंत्रण से बाहर नहीं किया जाएगा तब तक चाहे कोई भी एडवाइजरी जारी किया जाए, उसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा। कोई भी कठोर कानून तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि न्याय तंत्र और पुलिस तंत्र की सक्षमता पूरी तरह उके अनुकूल न हो। साथ ही अपराध की गंभीरता राजनीतिक, सामाजिक और जातीय विभाजनों से तय न हो, जैसा कि हाथरस के मामले में देखने को मिल रहा है।



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