कोरोना से संभल कर
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हषर्वर्धन यदि यह कहते हैं कि देश में कोविड-19 मामलों के वृद्धि का कारण लोगों का गैर जिम्मेदाराना रवैया है तो यह समझना चाहिए कि मामला गंभीर है और उनकी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत भी है।
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यह समझने की भी जरूरत है कि स्वास्थ्यकर्मियों सहित सार्वजनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण पदों पर रहने वाले लोगों के दिशा-निदेशरे पर ही कोरोना महमारी के विरुद्ध जंग लड़ी जा रही है। ये सभी लोग महामारी के प्रति जागरूक हैं और जान-बूझकर असावधानी और लापरवाही बरत भी नहीं रहे होंगे। इस तथ्य के बावजूद कई कोरोना योद्धा सांसद और मंत्री इस अदृश्य शत्रु के चपेट में आ गए। इसका सीधा सा अर्थ है कि समाज में जागरूकता और सावधानियों के स्तर को बढ़ाना होगा। लेकिन विडंबना यह भी है कि कोरोना काल के दौरान विशेष परिस्थितियों में संसद का सत्र चल रहा है।
सांसदों से यह अपेक्षा थी कि सामाजिक दूरी का पालन करते हुए वे अपनी भूमिका का निर्वाह करेंगे, लेकिन खेती-किसानी से जुड़े दो विधेयकों पर चर्चा के बाद उसे पारित कराने के दौरान जन प्रतिनिधियों ने जिस तरह का गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया, उससे संसद की मर्यादा तो भंग हुई ही साथ ही कोरोना से लड़ने के लिए बनाए गए सभी नियमों की भी अवहेलना हुई। जन प्रतिनिधियों पर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने की विशेष जिम्मेदारी है, लेकिन जब जन प्रतिनिधि ही नियमों की अवहेलना करने लगे हैं तो आम नागरिकों से भला क्या अपेक्षा की जा सकती है। यह राहत देने वाली बात है कि देश भर में रिकवरी दर तेजी से बढ़ रहा है। लगातार तीसरे दिन 90 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित रोगमुक्त होकर अपने घर लौट आए हैं।
लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि स्थिति को सामान्य होने जैसा मान लिया जाए। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हषर्वर्धन का कहना ठीक है कि लोग अनलॉक प्रक्रियाओं को ऐसा मान रहे हैं जैसे सब कुछ ठीक हो गया है। वास्तविकता तो यह है कि कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। लॉकडाउन खुलने के बाद लोगों के सार्वजनिक व्यवहार में ढिलाई आई है। बहुत से लोग बगैर मास्क पहने सड़कों पे दिखाई देने लगे हैं। लोगों को अपने व्यवहार को नियंत्रित करने की जरूरत है, खासकर तब तक जब तक कि कोविड वैक्सीन बाजार में उपलब्ध नहीं हो जाता।
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