चीन का बचना मुश्किल

Last Updated 22 Sep 2020 03:47:08 AM IST

चीन की नकेल कसने के लिए अब भारत नई रणनीति पर काम कर रहा है। इस मसले पर उसे जापान का साथ मिला है।


चीन का बचना मुश्किल

दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत को यह इल्म हो चला है कि अगर चीन को जल्द नहीं रोका गया तो वह इस इलाके में आधिपत्य जमा लेगा और तब भारत यहां कमजोर हो जाएगा। यही वजह है कि भारत और जापान ड्रैगन से मुकाबले के लिए तीसरे देशों को साथ लाने की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले दिनों यह कहकर इसकी तस्दीक कर दी कि भारत तीसरे देशों से साझेदारी के व्यावहारिक पहलुओं पर विचार कर रहा है। गौरतलब है कि भारत और जापान के पास रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र एवं प्रशांत महासागर के द्वीपीय देशों में साथ काम करने का अवसर है। चीन की विस्तारवादी नीति पर आक्रमण करने और उसे अपनी हद में रहने के लिए भारत और जापान दक्षिण एशिया के देशों  बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार के साथ मिलकर काम करेंगे। इसमें न केवल यहां की परियोजनाएं शामिल होंगी बल्कि आर्थिक निवेश से लेकर ढांचागत बुनियादी सुविधाएं खड़ा करना भी शामिल होगा। स्वाभाविक रूप से दोनों देश (भारत और जापान) इस इलाके में तभी मजबूत होंगे जब दक्षिण एशिया के छोटे देश विकास के मामले में तरक्की करेंगे।

इनके मजबूत और समृद्ध होने से ही चीन का दबदबा कम हो सकता है। हम सभी इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं हैं कि चीन अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत के बलबूते दक्षिण एशिया के छोटे देशों में अपनी बादशाहत कायम किए हुए है। चीन की दूसरे देशों की जमीन और अन्य संसाधन हड़पने की करतूत को दुनिया का हर मुल्क अच्छे से जानता है। उसकी इसी चालबाजी को खत्म करने के लिए अब हर देश रणनीतिक तौर पर एक हो रहे हैं। कुछ माह पहले भारतीय सीमा, साउथ चाइना सी, हांगकांग और ताइवान  में चीन की बढ़ती दादागिरी के मद्देनजर अब भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान  ने साथ आने की ठानी है। ये चारों देश अब अधिक से अधिक सैन्य और व्यापारिक सहयोग करने के मकसद से एक संगठन बनाने की प्रक्रिया में हैं। फिलहाल इसे क्वाड- ‘क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग’ का नाम दिया गया है। देखना है चीन की नीति से खार खाए देश अपनी रणनीति को किस रूप में अंजाम देते हैं।



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