संभल जाए चीन
पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव चरम पर है। सीमा विवाद में महीनों बीत जाने के बाद भी कोई कमी नहीं आई है।
संभल जाए चीन |
चार दशक से भी ज्यादा समय बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले दिनों गोलीबारी हुई। भारत-चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर पिछले 20 दिनों में कम से कम तीन बार फायरिंग की घटना हो चुकी हैं। यही स्थिति तीन साल पहले भारत-भूटान और चीन की सीमा से लगे डोकलाम इलाके में थी। तब चीन की आक्रामक रणनीति से भारतीय सुरक्षा हलके में जबरदस्त हलचल मच गई थी। 73 दिन तक चले इस तनावपूर्ण हालात के दौरान चीन की मीडिया ने कई बार भारत को युद्ध और गंभीर अंजाम भुगतने की चेतावनी दी थी, लेकिन 28 अगस्त को दोनों देशों ने आपसी समझ से इस मसले को सुलझा लिया। मगर इस बार हालात ज्यादा खराब हैं। भारतीय सेना रणनीतिक तरीके से जिस तरह पूर्वी लद्दाख में अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे रही है, वह काफी कुछ कहता है।
साफ है कि लंबी लड़ाई की रणनीति बन रही है और सेना बेहद आक्रामक है। यहां तक कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में चीन को अपनी हद में रहने और भारत की एकता और संप्रभुता के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कहकर यह जता दिया है कि भारत अब 1962 वाला देश नहीं है। हालांकि समझदारी इसी में है कि दोनों देश इस बात को समझें और विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकालें। अब सवाल यह उठता है कि पिछले एक साल में भारत चीन के रिश्ते किस दिशा में आगे बढ़े हैं। कई बार की कोर कमांडर स्तर की वार्ता, भारत और चीन के शीर्ष नेताओं की शिखर बैठक, सचिव स्तर की वार्ता समेत अन्य वैश्विक मंचों पर शिरकत करने के बावजूद चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है।
यहां तक कि दोनों तरफ की सेना की तैनाती जिस तेजी से इन इलाकों में हो रही है, वह वाकई चिंताजनक है। साथ ही, चीन अब लद्दाख के साथ ही अरुणाचल सेक्टर में भी सेना और हथियारों की तैनाती बढ़ाने में लगा है। बात सिर्फ चीन की नहीं है। पड़ोस में पाकिस्तान और नेपाल भी अपनी करतूतों से दिक्कतें पेश करते रहते हैं। तमाम चेतावनियों और सख्त कार्रवाइयों के बावजूद पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवादी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। इन सब मसलों के मद्देनजर चीन के मसले पर भारत की रणनीति कहीं से भी कमजोर नहीं दिखनी चाहिए।
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