निराश करता अनुमान
अप्रत्याशित और अनेपक्षित नहीं है कि दुनिया की प्रमुख एजेंसियों ने वर्ष 2020-21 में भारत की वृद्धि दर में बड़ी गिरावट का अनुमान जताया है।
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ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों के लिए भी ऐसा ही अनुमान जताया गया है। लेकिन यह कुछेक देशों में नहीं, बल्कि तमाम देशों में ऐसा ही रहना है। अलबत्ता, उन देशों में गिरावट ज्यादा रह सकती है, जहां कोविड-19 महामारी के चलते लंबे समय तक लॉकडाउन (जैसे कि भारत में अप्रैल-जून माह में) कर दिया गया था। उसके बाद भी लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से खोला गया। इस दौरान जनजीवन ठप होने के साथ ही आर्थिक गतिविधियां जहां की तहां रोक दी गई थीं। इस दौरान खुदरा और अन्य क्षेत्रों में आवाजाही सबसे ज्यादा प्रभावित हुई। फिच रेटिंग्स ने चालू वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में -10.5 प्रतिशत की भारी गिरावट का अनुमान जताया है, जबकि इंडिया रेटिंग का अनुमान है कि गिरावट -11.8 प्रतिशत तक रह सकती है। दरअसल, लॉकडाउन और उसके बाद की अवधि में आर्थिक पहिया ठहर जाने भर से ही गिरावट नहीं आएगी, बल्कि स्थितियां अभी भी बेहतर नहीं हुई हैं।
कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस गति से कि भारत इस मामले में विश्व में शीर्ष स्थान पर पहुंच सकता है। ऐसे में संशय और अंदेशों का माहौल अभी भी बना हुआ है। नतीजतन, अनेक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश अंकुशों में ढील देने को तैयार नहीं हो रहे। इस प्रकार के हालात में कारोबारी धारणा कमजोर हुई है। इसलिए आर्थिक गतिविधियों में तेजी नहीं आ पा रही। फलस्वरूप, नौकरियों पर संकट के बादल छा गए हैं। लोगों की नौकरियां छूट रही हैं, जिनकी बरकरार हैं तो उन्हें वेतन-भत्तों में कटौती, छंटनी आदि का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में मांग कमजोर पड़ गई है। हालांकि सरकार ने तमाम राहत पैकेज घोषित किए हैं, तमाम कोशिशें की हैं कि लोगों के हाथों में पैसा पहुंचे। ग्रामीण क्षेत्रों में खासकर मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के जरिए पैसे के प्रवाह को सुगम बनाया जा रहा है। इस उम्मीद से कि जरूरी साज-सामान की मांग बढ़ेगी जो उद्योग के लिए बूस्टर का काम करेगी। बहरहाल, कोरोना संक्रमण के मामले नहीं थमने से निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था को राहत मिलती नहीं दिख रही। यह स्थिति कमोबेश जनवरी-मार्च, 2022 तक बनी रह सकती है।
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