चौकस रहे भारत
कुछ दिन पूर्व तक यह लग रहा था कि भारत और चीन का सीमा विवाद आपसी बातचीत के जरिये हल हो जाएगा, लेकिन बीते सोमवार को पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों की ओर से की गई गोलीबारी की घटना ने शांति की संभावनाओं को फिर से भंग कर दिया है।
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भारत की शुरू से कोशिश रही है कि बातचीत से समस्याओं का निराकरण किया जाए, लेकिन चीन का इरादा शायद कुछ और है। ऐसा लगता है कि वह भारत को दबाना चाहता है। चीन की साम्राज्यवादी-विस्तारवादी नीति उसकी विचारधारा का हिस्सा है। इसलिए यह मानना सर्वथा गलत होगा कि चीन सीमा पर केवल झड़प कर रहा है।
वास्तविकता यह है कि वह भारत को युद्ध के लिए लगातार उकसाने वाली हरकतें कर रहा है। चीन के सोशल मीडिया पर भी भारत के साथ युद्ध का समर्थन किया जा रहा है। भारत और चीन के संबंधों का दूरगामी खाका पेश करने वाले भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी अब स्वीकार कर लिया है कि पूर्वी लद्दाख में हालात गंभीर हैं। वह रूस के दौरे पर हैं जहां चीनी विदेश मंत्री वांग यी से उनकी बातचीत हो सकती है। अभी 4-5 दिन पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री वेई शेंग ही के बीच मास्को में करीब ढाई घंटे तक बातचीत हुई थी।
बातचीत के बाद पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष और तनाव का माहौल खत्म होने के प्रति एक उम्मीद जगी थी, लेकिन चीन की ओर से जिस तरह की बयानबाजी हो रही है और चीनी सैनिकों की ओर से जिस तरह की आक्रामक कार्रवाइयां की जा रहीं हैं, उससे इस बात की पूरी आशंका है कि ये घटनाएं मध्य या बड़े स्तर के युद्ध में तब्दील हो सकती हैं।। भारत और चीन के बीच 1996 और 2013 में जो समझौते हुए हैं; उनके प्रावधानों में स्पष्ट उल्लिखित है कि कोई भी पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा के दो किलोमीटर के दायरे में गोली नहीं चलाएगा।
दोनों देशों के सैनिक यदि आमने-सामने आ जाते हैं तो वे सशस्त्र संघर्ष नहीं करेंगे। उन समझौतों के कारण सीमा पर अब तक शांति बनी हुई थी, लेकिन चीनी सैनिकों ने 16 जून और 7 सितम्बर को जिस तरह हमलावर रुख का प्रदर्शन किया है; उससे; जाहिर होता है कि चीन की नजरों में अब इन समझौतों का कोई अस्तित्व नहीं रहा है। इसलिए भारत को ज्यादा चौकस और ज्यादा सतर्क रहते हुए युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहना होगा।
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