भारत की बड़ी कामयाबी

Last Updated 09 Sep 2020 12:32:42 AM IST

भारत ने स्वदेशी तकनीक पर आधारित स्क्रैमजेट इंजन का उपयोग कर हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमांस्टेटर व्हीकल का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया।


भारत की बड़ी कामयाबी

यह ध्वनि से छह गुना अधिक गति से दूरी तय करने में सक्षम है। इसी के साथ अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा चौथा देश बन गया है, जिसने यह उपलब्धि हासिल कर ली है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक ने रक्षा वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर खुशी जाहिर की है।

आखिर इस मिसाइल तकनीक में ऐसा क्या है, जो इस पर इतना अधिक उत्साह प्रकट किया जा रहा है? दरअसल, भारत अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल को विकसित करने में सक्षम हो जाएगा। हालांकि चीन इस दिशा में भारत से अभी आगे है, लेकिन अनुमान है कि भारत अगले पांच-छह वर्षो में यह उपलब्धि अर्जित कर लेगा। यह मिसाइल ऐसी होती है, जिसके रास्ते का पता लगाना आसान नहीं होता। अभी तक भारत के पास रूस के सहयोग से बनाई गई सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल-ब्रह्मोस-है, जिसकी गति ध्वनि से करीब तीन गुना अधिक है।

इसकी मारक क्षमता से 290 किमी है, जिसे 400 किमी किया जा रहा है। हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक विकसित करने का मतलब यह होगा कि भारत अब ध्वनि से छह गुना अधिक गति वाली मिसाइल बनाने में सक्षम हो जाएगा। यानी इसके जरिये दुश्मन के किसी भी ठिकाने को कुछ ही पलों में ध्वस्त किया जा सकता है। ये मिसाइलें ऐसी होती हैं, जो दुश्मन की मिसाइल रक्षा प्रणाली को भेदने में सक्षम होती हैं। कारण यह है कि इनकी गति तेज तो होती ही है, ये उध्र्वाकार प्रक्षेप पथ के बजाय क्षैतिज पथ का अनुसरण करती हैं।

इससे इन्हें इंटरसेप्ट करने और इनके खिलाफ कार्रवाई करने का मौका मिलना कठिन हो जाता है। इसके विपरीत बैलिस्टिक मिसाइलें उध्र्वाकार मार्ग का अनुसरण करती हैं। ये मिसाइलें क्रूज मिसाइलों से अपेक्षाकृत बड़ी भी होती हैं। इस कारण इन्हें दुश्मन द्वारा नष्ट करना आसान होता है। ज्यादातर मिसाइलें बैलिस्टिक तकनीक पर आधारित होती हैं, जिनके रास्ते का पता लगाना कठिन नहीं होता। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस हाइपरसोनिक तकनीक के विकास से भारत ने रक्षा क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण छलांग लिया है, लेकिन इसका उपयोग केवल रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हो सकता, अंतरिक्ष जगत में भी इसकी अहमियत होगी। इससे कम लागत पर अंतरिक्ष में उपग्रहों को भेजा जा सकेगा।



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