निराशाजनक आंकड़े

Last Updated 03 Sep 2020 01:10:37 AM IST

घरेलू अर्थव्यवस्था की पहली तिमाही के आंकड़े निश्चय ही निराशाजनक हैं। अप्रैल-जून के दरम्यान देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 23.9 फीसद घटा है जो देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी तिमाही गिरावट है।


निराशाजनक आंकड़े

अभी ये आंकड़े मोटे तौर पर जारी किए गए हैं। वास्तविक आंकड़ों में यह गिरावट और भी ज्यादा गंभीर हो सकती है क्योंकि इसमें असंगठित क्षेत्र के प्रदर्शन को शामिल नहीं किया गया है। जाहिर है जब संशोधित आंकड़े आएंगे तो उनमें यह गिरावट और बड़ी हो सकती है।

हालांकि अंदेशा पहले से ही था कि जीडीपी के पहली तिमाही के आंकड़े नकारात्मक रहेगे क्योंकि कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने जो लॉकडाउन लागू किया था उससे देशभर की प्रमुख आर्थिक गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ गई थीं। जाहिर है जीडीपी में गिरावट कोई अप्रत्याशित नहीं है लेकिन यह इतनी बड़ी होगी यह अनुमान तो बिल्कुल नहीं था। देखा जाए तो जापान, जर्मनी, इटली, फ्रांस और ब्रिटेन की तुलना में यह गिरावट काफी ज्यादा है। हकीकत यह है कि कोरोना संकट से पहले भी देश की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही थी।

ऐसा न होता तो चार साल पहले की तुलना में वृद्धि दर वर्ष 2019-20 में घटकर आधी नहीं रह गई होती। इस नरमी को दूर करने के लिए सरकारी स्तर पर भले ही बड़े उपाय किए गए हों लेकिन वे  कारगर साबित नहीं हो पाए हैं। दरअसल, नोटबंदी व जीएसटी के झटकों से घरेलू अर्थव्यवस्था उबर ही नहीं पाई पाई है। कोरोना ने इस संकट में आग में घी का काम किया है। सचाई यह है कि घरेलू खपत जमींदोज होने से निजी क्षेत्र निवेश बढ़ाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। सस्ता होने के बावजूद लोग कर्ज नहीं ले रहे हैं।

ऐसे में घरेलू खपत कैसे बढ़ पाएगी, सरकार को विचार करने की जरूरत है। सवाल है कि क्या वित्त वर्ष की अन्य तिमाहियों में गिरावट थम पाएगी, मौजूदा परिदृश्य में ऐसे संकेत नजर नहीं आ रहे। सुस्ती से उबरने के लिए कहने को तो सरकार ने 20 लाख करोड़ का पैकेज जारी किया है, लेकिन मौजूदा संकट से निपटने में वह पर्याप्त नहीं है। जीडीपी में बड़ी गिरावट को थामने के लिए सरकार को लोगों की आय बढ़ाने के उपायों पर नये सिरे से रणनीति बनानी होगी। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो हालात और जटिल हो सकते हैं।



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