चीन की घेराबंदी
गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों के हाथों मार खाने के बाद ऐसा लग रहा था कि चीन सबक लेगा लेकिन पैंगोंग झील के इलाके में उसकी आक्रामक कार्रवाई से यही प्रतीत होता है कि उसक नीयत में खोट है।
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हालांकि चीन इस बार अपने मंसूबे में विफल रहा और भारतीय सैनिकों ने रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण ठिकानों को अपने नियंतण्रमें ले लिया। इससे इस इलाके में भारत को न केवल सामरिक दृष्टि से बढ़त हासिल होगी, बल्कि मौजूदा विवाद में सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ेगी।
जाहिर है चीन दबाव में होगा। घटना के उपरांत चीनी सत्ता प्रतिष्ठान के विभिन्न अंगों द्वारा बारम्बार दिए जाने वाले बयानों से यह स्पष्ट है। अब क्षेत्र में शांति चीन के भावी रु ख पर निर्भर करेगा, लेकिन तिलिमिलाया चीन क्या करेगा, अभी अटकलबाजी का विषय है। इस बीच दोनों देशों की ओर से वास्तविक नियंतण्ररेखा पर सैनिक जमावड़ा किया जा चुका है।
जिस कालखंड में यह घटना घटित हो रही है, वह चीन के अनुकूल नहीं है। रूस में ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन के देशों की बैठक में भारत और चीन दोनों देशों के प्रतिनिधि भागीदारी करने वाले हैं। अमेरिका के साथ अपने प्रगाढ़ होते रिश्ते को बनाए रखते हुए यह भारत के हित में है कि वह इन संगठनों में रहकर चीन को राजनयिक बढ़त कायम करने का मौका न दे। रूस भी चाहेगा कि भारत इन संगठनों का सक्रिय सदस्य बना रहे, ताकि चीन उसके ऊपर दबाव बनाने की स्थिति में न आ जाए।
कोई नहीं जानता कि रूस दोनों देशों के बीच विवाद सुलझाने में मददगार साबित हो, जैसा कि डोकलाम गतिरोध के बारे में कहा जाता है। दूसरी तरफ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत को मिलाकर बना क्वाड नामक संगठन तेजी से ठोस आकार लेने लगा है, जो चीन की चालबाजी पर नकेल कसने में सहायक होगा। इसकी नई दिल्ली में जल्द ही बैठक होने वाली है, जो चीन के लिए स्पष्ट संदेश होगा।
अब अमेरिका को भी अहसास हो गया है कि भारत के बिना हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में चीन की सत्ता को चुनौती देना आसान नहीं होगा। यूएस-इंडिया स्टेटेजिक फोरम में अमेरिकी उप विदेश मंत्री स्टीफन बेगुन ने यहां तक कह दिया कि अमेरिका की रणनीति हर मोर्चे पर चीन को पीछे धकेलने की है। इसी पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन शुरू होने जा रहा है। देखना दिलचस्प होगा कि वहां चीन की विस्तारवादी नीति पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सवाल उठता है, या नहीं।
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