करदाताओं को राहत
देश के बुनियादी विकास में करदाताओं की निर्णायक भूमिका होती है। कर वसूली की मदद से ही सरकार गरीबी दूर करने के लिए समाज कल्याण से जुड़ी योजनाओं का खाका तैयार करती है।
करदाताओं को राहत |
इस मामले में चिंता की बात यह है कि देश में जिस हिसाब से लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है उस अनुपात में करदाताओं की संख्या नहीं बढ़ी है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आकलन वर्ष 2019-20 के लिए देश की करीब 135 करोड़ की आबादी में से महज छह करोड़ लोगों ने ही आयकर रिटर्न जमा कराया है।
इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि महज डेढ़ करोड़ लोग ही आयकर का भुगतान करते हैं। बाकी लोग अपनी सालाना आय 2.5 लाख रुपये से कम दर्शाते हैं जो कि करमुक्त है। देश की अर्थव्यवस्था के हिसाब से करदाताओं के आंकड़ों को कतई जायज नहीं ठहराया जा सकता। आखिर इसकी वजह क्या है, सरकार को इसकी तह में जाकर मंथन करना चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं कि देश का एक बड़ा वर्ग आयकर देने से बचता आया है।
नौकरीपेशा ही एक ऐसा वर्ग है, जो अपनी आय के हिसाब से कर का भुगतान करता है। हैरानी की बात यह है कि आयकर अधिकारी इसी वर्ग को सबसे ज्यादा अपने राडार पर लेते हैं। मामूली सी चूक होने पर नोटिस भेजना और किसी कारण समय पर जवाब नहीं मिला तो भारी-भरकम जुर्माना ठोक देना एक रवायत सी बन गई है। कहना न होगा कि नोटिस के जवाब के लिए अधिकारी करदाताओं को अपने कार्यालयों में खूब चक्कर कटवाते रहे हैं। इस तरह के मामलों को निपटाने की आड़ में वसूली का धंधा भी खूब चला है। इसी भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सरकार ने कर से जुड़े नोटिसों का जवाब देने के लिए संपर्क रहित प्रणाली शुरू की है, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं।
यदि करदाता को अब कोई नोटिस मिलता है तो उसे परेशान होकर आयकर विभाग के चक्कर नहीं काटने होंगे। राहत की बात यह है कि करदाता और आयकर अधिकारी का आमना-सामना नहीं होने से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लगेगा। यही नहीं अधिकारियों के जांच रूपी हंटर का भय दूर होने से ज्यादा-से-ज्यादा लोगों में इसका प्रचार-प्रसार होगा और रिटर्न भरने को प्रेरित होंगे। जाहिर है सरकार की इस पहल से करदाताओं को भारी राहत मिलेगी।
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