प्रायोजित गिरफ्तारी
जिस विकास दुबे के पीछे पुलिस बौराई सी भाग रही थी, वह अंतत: उज्जैन के महाकाल मंदिर में पकड़ा गया।
प्रायोजित गिरफ्तारी |
एक बहुत ही सनसनीखेज तलाश का बहुत ही नाटकीय और बहुत ही फुसफुसा सा अंत हुआ। विकास की जिस तरह से गिरफ्तारी हुई उसे देखकर लगता है कि यह गिरफ्तारी स्वयं उसने प्रायोजित कराई थी। अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पुलिस की पीठ थपथपाते हुए उसे भले ही बधाई दी हो, लेकिन सच बात यह है कि मध्य प्रदेश पुलिस विकास दुबे नाम के इस शातिर अपराधी की ढाल बन गई। उत्तर प्रदेश पुलिस जिस तरह इस गुंडे के साथियों को खोज-खोज कर मार रही थी, उससे तो यह निश्चित लग रहा था कि इसका अंत भी इसी तरह होगा और इसे बिना कोर्ट-कचहरी के इसके अंतिम पड़ाव तक पहुंचा दिया जाएगा, लेकिन यह अपराधी पुलिस से कहीं ज्यादा शातिर निकला और पुलिस के प्रयासों पर कहीं ज्यादा भारी पड़ा। उसने न केवल तात्कालिक रूप से अपने को बचा लिया, बल्कि मीडिया में प्रचारित होकर स्वयं को पुलिस की किसी भी अतिवादी कार्रवाई के विरुद्ध भी अपने आप को सुरक्षित कर लिया। भले ही मीडिया यह जानकारी दे रहा हो कि उसे मंदिर के चौकीदार ने देखा या पुलिस के प्रयास से वह पकड़ा गया, लेकिन उसकी गिरफ्तारी के जो दृश्य सामने आए हैं, वे स्पष्ट बता रहे हैं कि यह गिरफ्तारी स्वयं उसकी रची हुई थी। मध्य प्रदेश पुलिस जाने-अनजाने उसको बचाने में उसके इरादों को ही पूरी कर गई।
अब लंबी अदालती कार्रवाई चलेगी और इस अपराधी के रक्षक, संरक्षक, सहयोगी और सलाहकार इसको बचाने के लिए जी-जान से जुट जाएंगे। भारतीय न्याय व्यवस्था की जो स्थिति है उसे देखते हुए सुनिश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि अपनी तरह के भयानकतम हत्याकांड को अंजाम देने वाला यह शख्स फांसी के फंसे तक पहुंच ही जाएगा। कई हत्याओं के बावजूद जब वह बार-बार बचकर निकल रहा था, तब इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह इस बार भी बचकर नहीं निकल जाएगा। इस हत्यारे के विरुद्ध चलाई जाने वाली कानूनी प्रक्रिया पर पूरे देश की नजर रहेगी। वस्तुत: यह पूरा प्रकरण भारतीय समाज के लिए भी एक कड़ी चेतावनी है कि उसे संभलना है, या पूरी तरह अपराधियों के साथ गर्त में जा गिरना है।
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