पाठ्यक्रम में कटौती
कोरोना के कारण सीबीएसई द्वारा कक्षा 9 से 12 तक के पाठ्यक्रम में कटौती स्वागतयोग्य कदम है। पाठ्यक्रम में 30 प्रतिशत की कमी करने का निर्णय लिया गया है।
पाठ्यक्रम में कटौती |
इसका मतलब यह होगा कि जो अध्याय पाठ्यक्रम से हटाए गए हैं, वे बोर्ड और आंतरिक परीक्षाओं का हिस्सा नहीं होंगे। हालांकि कक्षा एक से लेकर आठ तक के पाठ्यक्रम में सीबीएसई ने किसी कमी का ऐलान नहीं किया है, लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि इन कक्षाओं के छात्र-छात्राओं पर से भी पढ़ाई का बोझ घटेगा।
सीबीएसई का यह निर्णय आकस्मिक नहीं, बल्कि सुविचारित है। दरअसल, कोरोना के कारण उत्पन्न असाधारण परिस्थितियों को देखते हुए सीबीएसई को कक्षा 9 से 12 तक के पाठ्यक्रम में कमी करने को कहा गया था। कोरोना के कारण देश भर में स्कूल बंद हैं। हालांकि कुछ स्कूलों की ओर से ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था की गई है, लेकिन अधिकतर छात्र इससे वंचित रहे। ऑनलाइन शिक्षा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि स्कूल और उसके छात्र-छात्राओं के पास इसके लिए आवश्यक सुविधा हैं, या नहीं।
जाहिर है जो छात्र गरीब परिवार के होंगे, वे इस व्यवस्था से बाहर हो जाएंगे, क्योंकि नई तकनीक उनकी पहुंच के बाहर है। ऐसा न हो कि नई तकनीक संपन्न परिवार के बच्चों के लिए ही फायदेमंद रहे। लेकिन मौजूदा संकट के लिए सरकार और स्कूल प्रशासन को दोष देना उचित नहीं होगा, क्योंकि कोरोना के कारण इन्हें तैयारी करने तक का समय नहीं मिला जबकि इसके लिए पहले से कोई तैयारी नहीं थी, चाहे वह पाठ्यक्रम के स्तर पर हो या शिक्षकों के। ऐसी स्थिति में यह पूरी कवायद छात्रों को व्यस्त रखने तक सीमित हो गई है और शिक्षण अधिगम के मूल उद्श्देय से भटकती प्रतीत होती है। न केवल भारत, बल्कि संपूर्ण दुनिया में कोरोना ने शिक्षा व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
अधिकतर देशों में स्कूल पूर्णत: या आंशिक रूप से बंद कर दिए गए हैं। स्कूलों की बंदी से न केवल छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रभावित हुए हैं, बल्कि इसके दूरगामी सामाजिक-आर्थिक नतीजे भी रहे, खासकर वंचित समुदाय के बच्चों के लिए। बहरहाल, भारत सरकार का यह फैसला सराहनीय है, जिससे सभी विद्यार्थी लाभान्वित होंगे। कम से कम उन पर पढ़ाई और परीक्षा का तनाव तो कम होगा ही।
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