लेह में प्रधानमंत्री
चीन से जारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शुक्रवार सुबह लेह पहुंचे। पीएम मोदी का ये दौरा अचानक था, जिससे हर किसी का चौंकना लाजिमी था।
लेह में प्रधानमंत्री |
पीएम मोदी के साथ इस दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बिपिन रावत भी मौजूद थे। यहां प्रधानमंत्री को सेना, वायुसेना के अधिकारियों ने जमीनी हकीकत की जानकारी दी। मोदी ने जवानों का हाल चाल जाना और आर्मी के बड़े अफसरों से हालात का जायजा लिया। उन्होंने जवानों के सामने एक लंबी स्पीच भी दी।
स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस संक्षिप्त किंतु अहम दौरे के सामरिक और कूटनीतिक मायने भी हैं। उनकी यात्रा से दो बातें बिल्कुल साफ निकलकर आई हैं। पहला-जवानों का मनोबल किसी भी परिस्थिति में टूटने या बिखरने नहीं दिया जाएगा और दूसरा-पड़ोसी देश अपनी हद में रहे तो यह उनके लिए बेहतर होगा। इसी बहाने पीएम ने चीन और कुछ हद तक पाकिस्तान को भी सीधा संदेश दे दिया। कहने का आशय साफ इंगित करता है कि भारत युद्ध नहीं चाहता है और शांति के लिए अपनी तरफ से उससे जो बन पड़ेगा, वह करेगा।
यही वजह है कि उन्होंने अपने संबोधन में चीन का एक बार भी उल्लेख नहीं किया। यह इस ओर इशारा है कि उन्होंने दोनों देशों के बीच जारी तनाव के बावजूद संवाद का एक स्पेस रखा है। 20 जवानों की शहादत के बाद यह कयास लगाए जा रहे थे कि भारत इसके प्रतिवाद या प्रतिक्रिया में क्या कदम उठाएगा? विपक्ष भी सरकार से इस मसले पर दो-दो हाथ करने को लेकर बेहद आक्रामक थी।
लिहाजा, सरकार को फ्रंटफुट पर आकर खेलना ही था। जवानों के बीच जाकर उनकी हौसलाअफजाई करना अच्छा कदम माना जाएगा। दिल्ली में रहकर बहुत सारी बातें या जानकारियां अधूरी रह जाती हैं। प्रधानमंत्री का फ्रंट लाइन या ग्राऊंड पर पहुंचना और इशारों-इशारों में कई संदेश देना बिल्कुल सही और ईमानदार कदम माना जाएगा। अब आगे भारत क्या कदम उठाएगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है, मगर प्रधानमंत्री के मजबूत इरादों के सामने आने के बाद इस बात में कतई शक-शुबहा नहीं रह जाता है कि भारत चीन की ‘हिकमत’ से डरने या पीछे हटने वाला नहीं है। नि:संदेह गलवान हिंसा पर प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिक्रिया देने में थोड़ा वक्त लिया, मगर इसके काफी गहरे निहितार्थ हैं।
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