अंध विरोध छोड़िए
गृह मंत्री अमित शाह ने राजधानी दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों की रोकथाम के लिए बीते सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई थी।
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इस बैठक में भाजपा, कांग्रेस, आप और बसपा के नेताओं ने शिरकत की थी। बैठक में अमित शाह ने कहा कि दिल्ली में सभी राजनीतिक दल आपसी मतभेदों को भुलाकर जनता के हित में काम करें। अमित शाह की इस बात पर किसी का विरोध नहीं हो सकता और होना भी नहीं चाहिए कि इस समय सबको मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस समय राजनीति में बहुत से ऐसे सरकार विरोधी समूह हैं, जो सिर्फ-और-सिर्फ सरकार की आलोचना से प्रतिबद्ध हैं। सरकार अच्छा कर रही है या बुरा कर रही है, इस पर विचार करने या इसकी विवेचना करने से उनका कोई लेना-देना नहीं है। उनको सरकार के हर कदम की आलोचना करनी है। उसकी खामियां गिनानी हैं और उसे देश और जनता के लिए हानिकर बताना है। जो इस तरह के सर्वकालिक और मतांध विरोधी हैं, सरकार उनकी आसानी से उपेक्षा कर सकती है।
लेकिन अधिकांश राजनीतिक दल कोरोना के मामले पर सरकार के साथ सहयोग करने की बात कह चुके हैं। लेकिन अगर उनकी राय में सरकार द्वारा उठाया गया कोई कदम उचित नहीं है या परिणामदायी नहीं है या उसके गलत परिणाम आने की आशंका है तो विपक्षी दल होने के नाते यह उनका अधिकार है कि अपना मत सरकार के सामने रखें। ऐसे समय में सरकार का भी यह दायित्व हो जाता है कि सदाशयता से रखे गए विपक्षी दलों के सुझावों और विचारों पर सदाशयता से विचार करें। उन्हें सिर्फ इस आधार पर खारिज न करें कि यह सुझाव या विचार उसकी कट्टर राजनीतिक विरोधियों की ओर से आए हैं। ताली दोनों हाथ से बजती है। वास्तविक सहयोग सरकार और विपक्ष दोनों की सदाशयता से ही निर्मित हो सकता है।
जहां विपक्षी दलों को अपने अंध विरोध को त्यागने की जरूरत है तो सरकार को अंध नकार की प्रवृत्ति को छोड़ने की जरूरत है। इस समय देश पर जो संकट है वो बहुत गंभीर है। इस संकट की गंभीरता को अब अविलंब समझा जाना चाहिए और सभी को कोरोना महामारी के विरुद्ध संघर्ष में एकजुट होकर एक मंच पर आ जाना चाहिए। उम्मीद की जाती है कि देश के राजनीतिक दल कम-से-कम कोरोना महामारी तक एकजुट होकर भारतीय राजनीति में एक आदर्श उपस्थित करेंगे।
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