कृषि सुधार
केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के लिए एक देश एक बाजार नीति की मंजूरी निस्संदेह ऐतिहासिक फैसला है।
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कृषि मंडियों को लाइसेंस राज से मुक्त करने की मांग लंबे समय से थी लेकिन सरकारें ऐसा करने से बचती रहीं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में संपन्न मंत्रिमडल की बैठक में कृषि सुधार संबंधी जितने भी फैसले लिए गए अगर वो अपेक्षाओं के अनुरूप लागू हों तो किसानों के जीवन में आमूल बदलाव आ जाएगा।
किसान अपनी उपज को उचित मूल्य पर राज्य के भीतर या बाहर किसी भी बाजार में बेचने को स्वतंत्र होंगे। बिना रु कावट ऑनलाइन सौदे कर पाएंगे। सरकार ने सीमांत-लघु किसानों के उत्पादों की गारंटीयुक्त उचित कीमत दिलाने के लिए दूसरा अध्यादेश लागू करने की भी घोषणा की।
इसमें बुवाई से पहले उपज की गारंटी दर तय हो जाएगी। बिचौलिये की भूमिका खत्म करने के उद्देश्य से कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन व सुविधा) और किसान (बंदोबस्ती व सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी गई है। 65 साल पुराने आवश्यक वस्तु कानून में बदलाव से जुड़े अध्यादेश जारी करने के साथ दाल, अनाज, प्याज-आलू जैसे उत्पाद इसके दायरे से बाहर आ गए हैं। इन पर भंडारण की सीमा के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
मतलब कि किसान अब कहीं भी उत्पाद बेच सकते हैं। ध्यान से देखेंगे तो सरकार ने नियामकीय व्यवस्था को उदार बनाने के साथ ही उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की है। संशोधन के तहत व्यवस्था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि मूल्य श्रृंखला किसी भी प्रतिभागी की स्थापित क्षमता और किसी भी निर्यातक की निर्यात मांग इस तरह की स्टॉक सीमा लगाए जाने से मुक्त रहेगी।
कुल मिलाकर सारे फैसलों या सुधारों का लुव्वोलुवाब यह है कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों की तरह कृषि और किसानों को अनावश्यक बंदिशों से मुक्त किया जाए लेकिन इसके जोखिम तथा आम किसानों की स्थिति को देखते हुए हर संभव संरक्षण भी मिले। मोदी सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस दृष्टि से तो यह आवश्यक था ही, साथ ही यदि पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पाना है, तो उसके लिए भी कृषि क्षेत्र को सशक्त करना जरूरी है।
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