धार्मिक नेताओं का उपयोग
कोरोना संक्रमण प्रसार से लोगों को बचाने के लिए सरकार द्वारा स्थानीय धार्मिंक, सामुदायिक एवं राजनीतिक नेताओं से सहयोग लेने का निर्णय उचित एवं व्यावहारिक है।
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हालांकि यह बात पहले से कही जा रही थी कि धार्मिंक एवं सामुदायिक नेताओं को लोगों के बीच जागरूकता फैलाने, दिशा-निर्देश का पालन कराने आदि में मदद लेना प्रभावी होगा। स्थानीय स्तर पर प्रशासन कहीं-कहीं ऐसा कर भी रहा था, लेकिन अब यह सरकार की कोरोना से संघर्ष की नीति हो गई है। इसमें शहरी बस्तियों में एक घटना कमांडर नियुक्त करने की योजना है, जो घटना प्रक्रिया प्रणाल को लागू करने के लिए योजना, अभियान, साजो-सामान और वित्त जैसी जिम्मेदारी निभाएगा। हालांकि यह कार्य पहले होना चाहिए था। मोहल्ले में लोगों से पहचान और प्रभाव रखने वाला व्यक्ति कमांडर बने और इलाके के नगरपालिका आयुक्त को अपने काम की जानकारी देने लगे तो कई समस्याएं उत्पन्न नहीं होंगी। स्वास्थ्य मंत्रालय का इस संबंध का दस्तावेज देखें तो उसमें लिखा है कि घनी बस्तियों में लोग काफी खराब हालत में रहते हैं।
यह हर कोई जानता है कि छोटी जगहों में बहुत लोग रहे हैं और इन लोगों को कोविड-19 जैसी श्वास संबंधी संक्रामक बीमारियों के खतरे और सामाजिक दूरी एवं पृथक वास की आवश्यक जानकारी देना भी चुनौतीपूर्ण है। हाल में जहां भी कोरोना व्यापक रूप से फैला है, उसमें ऐसी बस्तियों का काफी योगदान है। इसमें स्थानीय धार्मिंक नेता सबसे प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। वे उनके पास जाकर कुछ कहेंगे तो उसका असर होगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के दस्तावेज में वैचारिक नेता शब्द का भी प्रयोग है। कुछ ऐसे नेता होते हैं, जिनके विचार से ये प्रभावित होते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस निर्णय पर तेजी से अमल किया जाए। समस्या यह है कि राज्यों को इसके लिए तैयार करना होगा। आखिर अमल में तो राज्य ही लाएंगे। जिस तरह कोरोना कोविड-19 ने हमारे बीच आपात स्थिति पैदा की है उसका ध्यान रखते हुए इस पर त्वरित गति से आगे बढ़ा जाना चाहिए। स्थानीय विधायक, वार्ड मेंबर, पार्टियों के नेता आदि इन सबको अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए उनका सहयोग लेकर कुछ दिनों के अंदर ऐसे लोगों की पहचान और उनको तैयार करने का काम पूरा हो जाना चाहिए।
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