शहादत को नमन
जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में हमारे पांच जवानों का शहीद होना ऐसी क्षति है, जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता।
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यह ठीक है कि मुठभेड़ के दौरान सेना ने जिन दो आतंकवादियों को मार गिराया; उनमें एक लश्कर-ए-तैयबा का उच्च कमांडर हैदर था। यह आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में एक सफलता भी है। वास्तव में अगर आतंकवादियों ने एक घर में छिपकर लोगों को बंधक नहीं बनाया होता तो सुरक्षा बलों को इतनी बड़ी क्षति नहीं होती।
लोग अगर बंधक हों तो सेना और पुलिस की टीम के लिए विकट स्थिति पैदा हो जाती है। एक ओर उसे बंधकों को छुड़ाना होता है, दूसरी ओर आम जनता न मारी जाए इसका भी ध्यान रखना है और इस सबके साथ आतंकवादियों का सफाया करना या उन्हें पकड़ना होता है। ऑपरेशन कितना कठिन था इसका प्रमाण यही है कि यह करीब अट्ठारह घंटे तक जारी रहा। बंधकों को छुड़ा भी लिया गया, लेकिन राष्ट्रीय राइफल्स का एक कर्नल, एक मेजर, एक उप निरीक्षक तथा एक लांस नायक एवं एक रायफलमैन शहीद हो गए। बारिश और रात के अंधेरे में ऐेसे ऑपरेशन को अंजाम देना आसान नहीं था। स्थिति को लेकर थोड़े संभ्रम की भी तस्वीर नजर आ रही है।
पहले सेना को केवल आतंकवादियों के छिपे होने की खबर मिली और सर्च औपरेशन आरंभ हुआ। दोपहर तीन बजे के करीब खबर आई कि आतंकवादियों ने छाजीमफल्ला गांव में एक घर में छिपकर लोगों को बंधक बना लिया है। यह जवानों का दुर्भाग्य था कि इनके संचार यंत्र से संपर्क टूट गया। इस कारण वे कहां और किस स्थिति में हैं पता नहीं चला। संभव है अंदर घुसने के बाद ऐसी स्थिति आई हो, जिसमें इनका संचार यंत्र या तो कहीं गिर गया हो या आतंकवादियों के हाथों लग गया हो। केवल पांच लोगों की टीम से वैसी स्थिति का सामना करना कठिन था।
साफ है कि उन्होंने पूरी बहादुरी से पहले बंधक मुक्ति को प्राथमिकता दिया और उसके बाद आतंकवादियों से संघर्ष को। इसमें वे सफल जरूर हुए लेकिन अपनी जान देकर। जो भी हो ऐसे वीर जवानों को पूरा देश नमन कर रहा है। आखिर उन्होंने अपनी जान दे दी लेकिन किसी भी आम नागरिक की जान नहीं जाने दी। हमारे नायकों का यही वह चरित्र है, जो उनके सामने पूरे देश का सिर झुका देता है। उन्होंने फिर एक बार साबित कर दिया कि वे अपनी जान दे देंगे लेकिन हमें हर हाल में बचाएंगे।
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