डरावनी भीड़
मुंबई के बांद्रा में अचानक एकत्रित हुई कई हजार की भीड़ ने पूरे देश को एक बार फिर डरा दिया। कोरोना प्रकोप से बचने का एकमात्र विकल्प सोशल डिस्टेंसिंग है और उसकी वहां धज्जियां उड़ रही थीं।
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खबर है कि इसी तरह की भीड़ ठाणो से लेकर पुणो तक देखी गई। इसमें यह भय पैदा होना स्वाभाविक है कि अगर एक साथ एकत्रित इतने बड़े समूह में से कुछ को भी कोरोना संक्रमण हुआ तो स्थिति विकट हो जाएगी। प्रश्न है कि इस बात की पूरी जानकारी होते हुए कि ऐसा करना उनकी जान को जोखिम में डालने वाला है, लोग घरों से निकल कर एकत्रित क्यों हुए? कुछ मजदूरों की कठिनाई समझ में आती है।
यदि उनका काम बंद हो गया और जीने के लिए सामान्य भोजन तक समय पर उपलब्ध नहीं होगा, मकान मालिक या खोली मालिक किराया तक माफ नहीं करेंगे तो उनके पास अपने मूल घर की ओर देखने का ही रास्ता बचेगा। इस दृष्टि से यह महाराष्ट्र सरकार के कोरोना कुप्रबंधन की परिणति मानी जाएगी। उद्धव ठाकरे की सरकार इस मामले में बुरी तरह लचर नजर आ रही है। धारावी में राशन, पानी की समस्या वहां की स्थानीय मीडिया में लगातार आ रही है। लेकिन इसके साथ दूसरे पक्ष भी हैं। मसलन, लोगों को घर जाना था तो सभी के पास सामान होने चाहिए।
दूसरे, बांद्रा से कोई रेल बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश आदि की ओर जाती नहीं। तीसरे, महाराष्ट्र ने लॉकडाउन को पहले ही 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया था। प्रधानमंत्री ने तो बाद में घोषणा की। इन पहलुओं को देखने से साजिश की गंध मिलती है। वास्तव में एक साथ अचानक उतने लोग अपने-आप एकत्रित हो ही नहीं सकते। फिर वे बांद्रा मस्जिद के सामने ही क्यों एकत्रित हुए? इस संदर्भ में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है जिस पर मजदूरों को बाहर आने के लिए उकसाने का आरोप है।
वह अपने वीडियो में साफ तौर पर लोगों को भड़का रहा है। हो सकता है कि इस तरह दूसरे लोगों ने भी अंदर ही अंदर लॉकडाउन को विफल करने की साजिश की हो। दिल्ली में भी अफवाह के कारण आनंद विहार में हजारों लोगों ने 27-28 मार्च को इकट्ठे होकर भयानक दृश्य पैदा किया था। जाहिर है, ऐसे लोगों की पहचान कर सख्ती से कार्रवाई करनी होगी क्योंकि हजारों की जिन्दगी को दांव पर लगाने वाले ये समाज के दुश्मन हैं। लेकिन प्रदेश सरकार को भी लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने के प्रबंधन में व्यापक सुधार करना होगा।
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