प्रशंसनीय योगदान
यह समाचार हर भारतीय को राहत प्रदान करने वाला है कि भारतीय रेलवे इस समय कोरोना प्रकोप से संघर्ष में ऐसी कई भूमिकाएं निभा रहा है, जिसकी उम्मीद पहले शायद ही किसी ने की होगी।
प्रशंसनीय योगदान |
पहले रेलवे ने चुपचाप पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट यानी पीपीई तैयार किया और अब उसके द्वारा वेंटिलेटर बनाने की सूचना भी आ गई है। रेलवे के जगाधारी कारखाने में बनाए गए पीपीई को परीक्षण में सफल पाया जाना इस बात का प्रमाण है कि पूरे मानकों का ध्यान रखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा इसे तैयार किया गया।
इसका व्यापक पैमाने पर उत्पादन हुआ तो रेलवे अस्पतालों के साथ दूसरे अस्पतालों को भी आपूर्ति की जा सकती है। रेलवे के अनेक अस्पतालों को करोना उपचार केंद्रों और क्वारंटीइन सेंटर में बदला गया है। अब कपूरथला कारखाना में वेंटिलेटर तैयार करना इस बात को साबित करता है कि रेलवे ने यात्री रेलों के परिचालन भले बंद किया, लेकिन कोरोना संकट में कितना और क्या-क्या योगदान कर सकते हैं इस पर सक्रिय है। रेलवे का कहना है कि आरंभिक परीक्षण में वेंटिलेटर सफल है।
‘जीवन’ नाम के इस वेंटिलेटर को भारतीय चिकित्सा अनुसांधन परिषद या आईसीएमआर की हरि झंडी मिलना शेष है, पर जब सारे मानकों को ध्यान में रखकर बनाया गया है तो इसका परीक्षण में सफल होना निश्चित है। भारत के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। हालांकि मचाए गए तूफान के विपरीत अभी तक की आवश्यकता के अनुसार वेंटिलेटर की कमी की शिकायत नहीं मिली है। बहुत कम मरीज को वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है। लेकिन कोरोना का प्रसार ज्यादा हुआ तो हमें हर चीज ज्यादा मात्रा में चाहिए और उनमें वेंटिलेटर महत्त्वपूर्ण है।
अपने यहां निर्माण होने से भी यह काफी कीमत में उपलब्ध हो जाएगा। रेलवे को इस बात के लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि संकट का ध्यान रखते हुए 2500 डिब्बों को आइसोलेशन वार्ड का रूप दे दिया है तथा 2500 को और परिणत करने पर कार्य चल रहा है। अगर रेलवे के कथनानुसार हमें 40 हजार बेड वाला आइसोलन वार्ड तैयार मिलेगा तो यह साधारण योगदान नहीं होगा। वास्तव में ऐसे संकट के समय में सरकार के हर विभाग को अपने संसाधनों का अधिक-से-अधिक इस्तेमाल कर संघर्ष में योगदान पर काम करना होगा और रेलवे प्रमाण है कि ऐसा हो रहा है।
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