पलायन से बढ़ा खतरा

Last Updated 30 Mar 2020 03:53:06 AM IST

लॉक-डाउन की घोषणा के बाद अगले दिन से ही दिल्ली-यूपी के बॉर्डर पर जो दृश्य उभरने शुरू हुए वे बेहद मार्मिक और सभी को विचलित करने वाले थे।


पलायन से बढ़ा खतरा

दूरदराज के गांव-देहात से आकर भाड़े के मकानों में सामूहिक रूप से रहने वाले श्रमिकों के सपरिवार झुंड सड़कों पर दिखाई देने लगे। लॉक-डाउन ने इन्हें यकायक रोजगारविहीन कर दिया और आवास का भाड़ा चुकाने के अयोग्य बना दिया। ऐसी सूरत में इन श्रमिकों को यही सूझा कि अपने घर वापिस लौटा जाए।

लेकिन इन्हें वापस ले जाने वाली सारी रेलव्यवस्था और बस व्यवस्था लॉक-डाउन हो गई थी। ये लोग अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोद में लिये हुए अपने-अपने सामानों की पोटली सर पर रखकर पैदल ही अपने घर-गांव की ओर निकल पड़े। किसी को सौ किलोमीटर की दूरी तय करनी थी तो किसी को पांच सौ किमी से भी ज्यादा। कहीं-कहीं इन लोगों के चेहरों पर मास्क दिखाई  देता था तो कहीं रुमाल तो किसी के चेहरे पर अन्य कपड़ा। मतलब ये लोग कोरोना के आतंक से परिचित थे। और अपने तई बचाव का उपाय भी कर रहे थे।

लेकिन इनको यह नहीं पता था कि जहां वे रह रहे हैं वहीं ठहरना है। वहां से बाहर नहीं निकलना है। वास्तव में इनके पास लॉक-डाउन की सूचना तो थी लेकिन ऐसी कोई सूचना नहीं थी कि सरकार इनके भोजन और आवास की व्यवस्था भी सुनिश्चित करेगी। और इनकी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व भी निभाएगी। इस सामूहिक पलायन ने सरकार और प्रशासन की भारी अदूरदर्शिता दिखाई दी। दरअसल, होना तो यह चाहिए था कि अगर लॉकडाउन करना था तो पहले इन गरीब दिहाड़ी मजदूरों की रहने और खाने-पीने की व्यवस्था की जानी चाहिए थी।

सरकार की इस लापरवाही और अदूरदर्शिता की आलोचना न हो यह संभव नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार ने समूचा लॉक-डाउन मध्यवर्गीय लोगों के लिए किया है जिन तक टीवी के माध्यम से सरकारी प्रचार पहुंच रहा था और जिनकी लॉक-डाउन के संबंध में समझदारी भी बन रही थी। सरकार की इस एक गलती ने लॉक-डाउन से कोरोना निरोधक समूची व्यवस्था को ही खतरे में डाल दिया है। अगर सरकार को सचमुच कोरोना से लड़ाई लड़नी है तो उसे युद्धस्तर पर मजदूरों के पलायन को रोकना होगा और सरकारी मशीनरी को इन तक तीव्रगति से पहुंचना होगा ताकि पलायन के प्रभाव को रोका जा सके और कोरोना के प्रभाव को भी।



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