व्यक्ति बनाम प्रक्रिया
अब जबकि यस बैंक के संस्थापकों में से एक और इसके पूर्व सर्वेसर्वा राणा कपूर तक प्रवर्तन निदेशालय पहुंच गया है, तब कई सवाल उठ खड़े हुए हैं।
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यह ठीक है कि रिजर्व बैंक ने निजी क्षेत्र के इस चौथे सबसे बड़े बैंक को डूबने से बचाने की तैयार कर ली है। पर सवाल यह है कि हालात यहां तक पहुंचे कैसे? यह बैंक कोई छोटा-मोटा बैंक नहीं है। यस बैंक की वैबसाइट के मुताबिक ही इसकी शाखाओं की तादाद 1000 से ज्यादा है और और 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित क्षेत्रों में इसके करीब 1800 एटीएम काम कर रहे हैं।
इस बैंक की स्थापना 2004 में हुई थी। राणा कपूर की ख्याति बैंकिग जगत में ऐसे व्यक्ति के तौर पर थी जो किसी भी कंपनी को, खराब कंपनी को भी कर्ज दे सकता था, कुछ ज्यादा ब्याज दर पर। यानी कर्ज की सुरक्षा से ज्यादा ख्याल कपूर ने इस बात का किया कि किस तरह से बैंक ज्यादा कमा सकता है। सितम्बर 2019 में यस बैंक में कुल गैर-निष्पादित संपत्ति (नान परफार्मिंंग एसेट्स) कुल दिए गए कजरे की करीब 7.39 प्रतिशत थी। यानी यस बैंक द्वारा दिए गए कजरे में खराब कजरे का अनुपात बहुत ज्यादा था।
ऐसा नहीं है कि रिजर्व बैंक को यस बैंक के कामकाज की खबर नहीं थी, कपूर को उनकी इच्छा के विपरीत, कार्यकाल की तय अवधि खत्म होने से पहले ही रिजर्व बैंक द्वारा चलता कर दिया गया था। पर व्यक्ति के जाने के बाद भी उसके असर तो बचे ही रह जाते हैं। कपूर ने कई कर्जे व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर दिए थे। इनमें से कई डूबत हो गए। रिजर्व बैंक को जब लगा कि कोई नया बड़ा निवेशक यस बैंक में दिलचस्पी नहीं ले रहा है, बैंक की वित्तीय हालत डांवाडोल हो रही है, तो रिजर्व बैंक ने यस बैंक को एक तरह से स्टेट बैंक की झोली में डालने का फैसला किया। अब बड़ा सवाल यह है कि स्टेट बैंक को अगर इस सौदे में घाटा होता है, तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी?
रिजर्व बैंक को कहीं-न-कहीं जिम्मेदारी लेनी होगी कि बैंकों पर कारगर नजर रखने और उनके प्रबंधन की उचित व्यवस्थाओं के निर्माण में कमी रह गई है। बैंकों में कर्ज देने की व्यवस्थाओं की सम्यक प्रक्रिया होनी चहिए। ऐसा ना हो, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी रिजर्व बैंक की है। यस बैंक प्रकरण से यह सबक तो सीखा ही जाना चाहिए कि बैंकों में कर्ज देना एक तर्कसंगत, पारदर्शी प्रक्रिया पर आधारित हो, किसी व्यक्ति की रुचि-अरु चि के चलते पूरा संस्थान तबाह नहीं होना चाहिए।
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