प्रधानमंत्री का संदेश
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा देश के कई राज्यों के जन औषधि केंद्रों के लाभार्थियों से सीधा संवाद कई मायनों में महत्त्वपूर्ण माना जाएगा।
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इसका उपयोग करते हुए प्रधानमंत्री ने कोरोना वायरस से पैदा भय को दूर करने तथा सतर्क रहने का जो संदेश दिया, उससे देश को आश्वासन के साथ यह दिशा-दर्शन भी मिला है कि इससे न तो घबराने की जरूरत है और ना ही बिना डॉक्टर की सलाह के उपचार या बचाव का कोई नुस्खा अपनाने की। किंतु इस संवाद का मूल महत्त्व सस्ती औषधियों के संदर्भ में था। इससे दवाइयों के भारी कीमत चुकाने वालों को यह संदेश मिला कि जन औषधि केंद्रों में उसी दवा का जेनरिक संस्करण काफी सस्ते में मिल सकता है।
अनेक लाभार्थियों ने बताया कि पहले उनको कितनी कठिनाइयां होतीं थीं और जन औषधि केंद्र से संपर्क होने के बाद सस्ती दवा मिलने से इलाज आसान हो गया है। केंद्र में केवल जेनरिक दवाएं मिलती हैं। यानी जिन मूल रसायनों से अलग-अलग नाम से दवाएं बनाकर कंपनियां मोटी कीमतें वसूलतीं हैं; उनसे जनता को बचाने का कदम है। किंतु जैसा प्रधानमंत्री ने कहा कि इसकी सफलता इस बात पर निर्भर है कि डॉक्टर जेनरिक दवा लिखें।
दुर्भाग्य यह है कि ज्यादातर डॉक्टरों और दवा निर्माता कंपनियों के बीच की दुरभिसंधि के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है। ऐसे कम ही डॉक्टर हैं जो कि जेनरिक दवाएं लिखते हैं। बावजूद जन औषधि केंद्रों पर जाने से उसकी वैकल्पिक दवा मिल जाती है। इस मायने में प्रधानमंत्री का यह आश्वासन महत्त्वपूर्ण है कि ये दवाएं किसी भी अन्य दवाओं से कम प्रभावी नहीं है यह परीक्षणों से साबित हो गया है। वस्तुत: जन औषधि केंद्रों के बारे में एक दुष्प्रचार यह भी चल रहा है कि इसकी दवाएं सस्ती तो हैं, पर उतनी प्रभावी नहीं जितनी आम दवा। जगह-जगह से लाभार्थियों ने कहा कि जन औषधि केंद्रों का विस्तार होना चाहिए।
सरकार निश्चय ही इस पर ध्यान देगी। साथ ही लोगों को भी जन औषधि केंद्र खोलने के लिए आगे आना होगा। निश्चित रूप से इसमें अन्य दवाओं को बेचने के मुकाबले लाभ कम है, अभी ग्राहक भी कम आते हैं, पर यह व्यवसाय के साथ सामाजिक दायित्व के निर्वहन का भी मामला है। सामाजिक-धार्मिंक संगठन आगे आएं तो जगह-जगह जन औषधि केंद्र खोले जा सकते हैं। इसी तरह इसका प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए।
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