मिल गई सजा
बिहार के बहुचर्चित मुजफ्फरपुर बालिका गृह यौन उत्पीड़न कांड में आया दिल्ली के साकेत न्यायालय का फैसला बिल्कुल अपेक्षित था।
![]() मिल गई सजा |
बीस जनवरी को न्यायालय ने जिन 19 आरोपियों को दोषी मान लिया था, उनको सजा होनी निश्चित थी। इंतजार इस बात का था कि किसे कितनी सजा मिलती है। कुल दस अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा ऐसी है कि इन्हें अंतिम सांस तक जेल में रहना होगा।
इनमें बालिका संरक्षण गृह के परोक्ष संचालक ब्रजेश ठाकुर तथा तत्कालीन बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन शामिल हैं। सात को 10 साल तथा एक को तीन साल एवं एक को छह महीने की सजा मिलने का मतलब है कि अपराध की श्रेणी में अंतर था। वास्तव में मुजफ्फरपुर बालिका गृह के मामले के सच ने पूरे देश को हिला दिया था। कल्पना करना मुश्किल था कि जहां बालिकाओं को सुखद आश्रय मिलना चाहिए, सुरक्षा होनी चाहिए, बेहतर स्वास्थ्य सेवा, पौष्टिक भोजन एवं समुचित शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए वहां उनके साथ हर तरह का शारीरिक शोषण होता रहा।
निराश्रित बच्चियों के सामने इन दरिंदों का आदेश मानने के सिवा कोई चारा नहीं था। कोई अपने को सौंपने पर थोड़ा भी आनाकानी करता तो उसके साथ बेरहमी की जाती थी। इसमें वहां कार्यरत महिला कर्मचारियों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। बच्चियों का दंडाधिकारी के समक्ष धारा 164 के तहत दिया बयान किसी को भी विचलित कर सकता है। तो दोषियों को सजा मिल चुकी है, लेकिन चिंता का विषय है कि सालों से ऐसा चल रहा था लेकिन प्रशासन की ओर से कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसा तो हो नहीं सकता कि प्रशासन तक ऐसे अपराध की सूचना कभी पहुंची ही नहीं हो।
नहीं पहुंची तो यह भयावह विफलता है। मुजफ्फरपुर कांड सामने आने के बाद देश भर में ऐसी कई बालिका गृहों के ऐसे मामले सामने आए थे। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेकर मामले को दिल्ली स्थानांतरित किया। दोषियों को स्थानीय जेल से निकाल कर पटियाला जेल भेज दिया। ये अपनी जगह होते तो इतनी जल्दी फैसला आना मुश्किल होता। उम्मीद जगती है कि अन्य बालिका गृहों के अपराधियों को भी इसी तरह सजा मिलेगी तथा भविष्य में ऐसे वहशीपन और अपराध की पुनरावृत्ति नहीं होगी। यह तभी संभव होगा जब प्रदेशों का प्रशासन बालिका गृहों के संदर्भ में अपनी जिम्मेवारी का पालन करे। ऐसा न होने से ही बालिका गृह बालिकाओं के यौन शोषण और उत्पीड़न के गृह बन गए।
Tweet![]() |