बदलाव शीर्ष से ही

Last Updated 14 Feb 2020 12:04:23 AM IST

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद पार्टी के भीतर जिस तरह अंतर्कलह मचा हुआ है, वह अपेक्षित ही था।


बदलाव शीर्ष से ही

दिल्ली कांग्रेस के बाद केंद्रीय नेतृत्व पर भी सवाल किये जाने लगे हैं। वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति के बदलते स्वरूप के साथ पार्टी के लिए नई रणनीति बनाने का सुझाव दिया है। भूपेन्द्र हुड्डा, जयराम रमेश और वीरप्पा मोइली ने भी प्रतिक्रियाएं दी हैं।

अहम सवाल यह है कि दिल्ली की शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस क्या मृत प्राय: संगठन में जान फूंकने के लिए कोई कवायद करेगी,या समय के साथ पुराने र्ढे पर ही चल पड़ेगी? आम तौर पर एक व्यक्ति के प्रभुत्व वाले क्षेत्रीय दलों को छोड़ कर अन्य दलों में यह प्रवृत्ति दिखाई देती है कि हार के बाद पार्टी के अंदर थोड़ी-बहुत हलचल होने लगती है। जैसे शांत कुएं के जल में पत्थर फेंकने पर होता है। लेकिन कांग्रेस का इतिहास बताता है कि यहां पराजय के बाद कुछ ज्यादा ही तूफान उठता है। शायद यह प्रवृत्ति कांग्रेसी-परम्परा में शामिल हो गई है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा और प्रभारी रहे पीसी चाको के इस्तीफे इसी परम्परा के हिस्सा हैं।

सच तो यह है कि पिछले पांच वर्षो से कांग्रेस अपने शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी से जूझ रही है। दिल्ली के पूरे चुनाव अभियान के दौरान कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि कांग्रेस में सत्ता पाने की सहज इच्छा भी बची हुई है और वह वास्तव में दिल्ली की सत्ता की दावेदार है। शीर्ष से लेकर स्थानीय नेताओं के बीच न कोई तालमेल था और न ही चुनाव जीतने की कोई कारगर रणनीति थी। शीला दीक्षित के 15 वर्षो के कार्यकाल में दिल्ली में जो विकास हुए, वही कांग्रेस की जमा-पूंजी थी और इसी को आधार बना कर वह चुनाव में उतरती रही है।

इस बार भी वह उसके ही सहारे थी। जाहिर है कि मतदाता अतीत में नहीं, वर्तमान और भविष्य की ओर निहारता है। इसलिए दिल्ली के मतदाताओं ने यह मान लिया था कि कांग्रेस कहीं भी लड़ाई में नहीं है। सोनिया गांधी अपनी खराब सेहत के चलते तय सभा नहीं कर सकीं। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने एक-दो सभाओं को भले सम्बोधित किया, लेकिन वह प्रभावहीन ही रहा। ऐसे में कांग्रेस को वाकई पुनर्जीवित करना है तो शीर्ष स्तर से ही बदलाव करना होगा। यहां अहम सवाल है कि क्या कांग्रेस-जन नेहरू-गांधी परिवार से अलग किसी व्यक्ति को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने को तैयार हैं? पहला यक्ष प्रश्न तो यही है।



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