बज गया बिगुल
देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव 2020 का बिगुल बज गया है। हालांकि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दरजा प्राप्त नहीं है, फिर भी राजधानी होने के कारण यहां के चुनाव का राष्ट्रीय महत्त्व है।
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इस बार दिल्ली की राजनीतिक स्थिति 2015 के चुनाव से बहुत भिन्न है क्योंकि नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय परिसर में नकाबपोशों की गुंडागर्दी के विरोध में धरना-प्रदर्शनों के बीच यह चुनाव लड़ा जाएगा। इस मायने में इस चुनाव की तासीर कई अथरे में पिछले चुनाव से भिन्न होगी। दिल्ली में मुख्य तौर पर तीन राजनीतिक धाराएं हैं। भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप)। आम आदमी पार्टी सत्तारुढ़ है इसलिए उसकी प्रतिष्ठा सबसे ज्यादा दांव पर है। पार्टी के मुखिया और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बहुत ही चतुराई के साथ अपना राजनीतिक अभियान शुरू किया है।
वह काम के आधार पर वोट मांग रहे हैं। उनका मानना है कि यह चुनाव विकास के मुद्दों पर लड़ा जाएगा। आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली में बिजली और पानी मुफ्त देने के साथ अस्पतालों और स्कूलों की गुणवत्ता में संतोषजनक सुधार करके यह साबित किया है कि अगर कोई ईमानदार सरकार चाहेगी तो आम जनता की समस्याओं का निराकरण आसानी से कर सकती है।
कांग्रेस की स्थिति सबसे कमजोर मानी जा रही है। फिर भी वह अपने खोये हुए जमीन को वापस पाने के लिए भरपूर कोशिश करेगी। लेकिन इतना सुनिश्चित है कि वह इस लड़ाई में कहीं ठहर नहीं पाएगी। जाहिर है ऐसे में आम आदमी पार्टी का मुकाबला भाजपा के साथ होगा। दिल्ली का चुनाव भाजपा के लिए बहुत अहम है। वह पिछले 4 विधानसभा चुनाव हार चुकी है और अपने अहंकार में महाराष्ट्र जैसे महत्त्वपूर्ण राज्य गंवा चुकी है। इसलिए वह इस चुनाव में अपना जी-जान लगा देगी।
इसी क्रम में उसने डोर-टू-डोर कैंपेन शुरू किया है। भाजपा का सबसे कमजोर पक्ष यह है कि उसके पास मुख्यमंत्री को कोई चेहरा नहीं है। उम्मीद है कि भाजपा नरेन्द्र मोदी के नाम पर यह चुनाव लड़ेगी। मुख्यमंत्री पद के लिए स्थानीय चेहरा नहीं होने के कारण भाजपा की स्थिति कमजोर है। अब देखना है कि चुनाव के चाणक्य कहे जाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह केजरीवाल की चतुराई और चुनौती का सामना कैसे कर पाते हैं?
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