चिंता के साथ स्वागत

Last Updated 02 Jan 2020 04:43:51 AM IST

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 102 लाख करोड़ रुपये की बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं की घोषणा की है।


चिंता के साथ स्वागत

गौरतलब है कि तमाम मंचों से प्रधानमंत्री मोदी बार-बार कहते रहे हैं कि भारत में 100 लाख करोड़ रु पये का निवेश किया जाएगा बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं में। वित्त मंत्री की घोषणा को इसी कड़ी में देखा जाना चाहिए। यह निवेश पांच सालों की अवधि यानी वित्तीय वर्ष 2020 से वित्तीय वर्ष 2025 के दौरान कार्यान्वित किए जाएंगे। खर्च की बात जब भी होती है तब यह सवाल तो महत्त्वपूर्ण होता ही है कि खर्च होना कहां है। यह भी महत्त्वपूर्ण होता है कि खर्च के लिए रकम कहां से आएगी।

घोषणा के मुताबिक तमाम परियोजनाओं में केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों का हिस्सा 39-39 प्रतिशत रहेगा और बाकी 22 प्रतिशत का योगदान निजी क्षेत्र से आने की उम्मीद है। घोषणा के स्तर पर इसका स्वागत किए जाने का बाद कुछ तथ्यों का सामना भी जरूरी है। एक बात तो यह समझनी चाहिए कि बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं में लंबे समय तक निवेश होता है, और उनके लाभों को लेकर भी अनिश्चितता रहती है। निजी और सरकारी क्षेत्र की भागीदारी की परियोजनाओं ने कई बार निराशाजनक परिणाम दिए हैं। फिर तमाम कानूनी प्रक्रियाओं के चलते नीतिगत मंशाएं अर्थ खो देती हैं।

जैसे कि दिल्ली एनसीआर में नोयडा टोल ब्रिज का मामला देखा जा सकता है। पहले इस पुल पर जाने के लिए तय शुल्क का प्रावधान था। फिर कोर्ट के आदेश के बाद यह पुल शुल्क मुक्त हुआ। जाहिर है कि निजी क्षेत्र के उद्यमियों की रु चि उन परियोजनाओं में ही होती है जहां से सतत और प्रचुर लाभ की संभावना  हो। तो देखना होगा कि किस हद तक निजी क्षेत्र अपना निवेश बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं में करता है। एक  जनवरी को एक और महत्त्वपूर्ण आर्थिक खबर है। 2019-20 के समूचे वित्तीय साल के लिए जितना राजकोषीय घाटा प्रस्तावित था, उसका करीब 115 प्रतिशत तो 30 नवम्बर, 2019 तक हो चुका था। कर संग्रह में सुस्ती को लेकर अलग चिंताएं हैं।

कुल मिलाकर वित्तीय मामलों में सरकार की चिंताएं बढ़ रही हैं, और सरकार खुले हाथ खर्च करने की स्थिति में नहीं है। ऐसी सूरत में वित्तीय व्यवस्था के लिए सरकार को रचनात्मक और नये तरीके सोचने होंगे। बांड जारी करके कितने संसाधन जुटाये जा सकते हैं, बांड की ब्याज दर कितनी होगी, आखिर में समग्र असर राजकोषीय स्थिति पर कितना होगा, इन सवालों पर विचार जरूरी है।



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