नया विहान लाए
नये साल में नया सवेरा वह नई ऊर्जा लाए, जो हम सभी देशवासियों को भौतिक और राजनैतिक-आर्थिक सर्द हवाओं की ठिठुरन से छुटकारा दिला जाए। य
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ह कामना तो बेहद सामान्य है और अरसे से यही रिवाज है कि हम सभी नई आशा को नये संकल्पों की लौ से रोशन करते रहे हैं। यह नया साल भी हमें नये संकल्पों के साथ उम्मीद की नई डगर पर बढ़ चलने की इबारत लेकर आया है। लेकिन संकल्प हमेशा लक्ष्य को ध्यान में रखकर कुछ नया करने और कुछ से तौबा कर लेने का ही दूसरा नाम होता है।
तो, हम क्या करें और क्या न करें, इसका संकल्प करने के पहले यह विचार करना भी जरूरी है कि बीते वर्ष में ऐसा क्या है, जिसमें हम और तेजी लाने की उम्मीद कर सकते हैं और वह क्या है, जिससे छुटकारा पाने की सोच सकते हैं। बीता वर्ष सिर्फ लोक सभा चुनाव के मामले में ही एक वर्ग में खुशी ले आ पाया है, वरना वह बाकी सभी मामलों में उथल-पुथल, परेशानियां ही दे कर गया। बीते साल की शुरुआत ही आर्थिक सुस्ती के साए में हुई, जो हर तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ती ही गई। दिक्कत है कि यह बदहाली ग्रामीण, शहरी, खेती-किसानी, उद्योग, सेवा क्षेत्र चहुंओर एक समान है।
बेरोजगारी चरम पर है और छंटनी की आशंकाएं भी बदस्तूर हैं। इसलिए सबसे पहले तो हमें यही उम्मीद करनी चाहिए कि किसी तरह यह आर्थिक सुस्ती टूटे। इस मद में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी सरकार की बढ़ जाती है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस हालात को बदलने के लिए सरकार क्या कदम उठाती है क्योंकि उसके अब तक के कॉरपोरेट टैक्स में कटौती या ऐसे ही कुछ कदमों का खास असर नहीं दिखा है। तो, क्या हमें नये बजट में कुछ ऐसी नीतियों और कार्यक्रमों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, जिससे यह सुस्ती टूटे।
इसके अलावा, बीता वर्ष कश्मीर और नागरिक संशोधन विधेयक और एनआरसी व एनपीआर की आशंकाओं के कारण उथल-पुथल की स्थितियां देकर गया है। इससे सरकार को तो पुनर्विचार करना ही चाहिए, हमें भी संकल्प लेना चाहिए कि चाहे जो हो हम समाज को बंटने नहीं देंगे और संविधान के संकल्पों को मजबूत करेंगे। कुछ आशंकाएं विश्वविद्यालयों और अन्य जगह पुलिस ज्यादती को लेकर भी पैदा हुई हैं, जिनसे भी तौबा करने की दरकार है। उम्मीद करें, नया वर्ष हम सबके और देश के जीवन में नया विहान लाए।
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