सच आएगा सामने
यमुना एक्सप्रेस वे जमीन घोटाला की खुलतीं परतें बता रहीं हैं कि किस तरह बड़े और महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं की आड़ में भी नीति निर्माण से जुड़े बेईमान लोग देश के साथ धोखेबाजी करते हैं।
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अब जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यीडा) भूमि घोटाला मामले की जांच का जिम्मा संभाल लिया है तो उम्मीद करनी चाहिए पूरा सच सामने आएगा तथा दोषियों को उनके अपराध की पूरी सजा मिलेगी। आखिर यमुना एक्सप्रेस वे जब बना तो वह हाइवे के मामले में देश की शान माना गया। कितने लोगों ने उसके लिए कहां-कहां काम किया, कितने उजड़े इसका हिसाब तक नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन जिन 20 लोगों के खिलाफ पहले उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी और अब प्रक्रिया के अनुरूप सीबीआई ने दोबारा दर्ज किया है वो सब इस परियोजना के लुटेरे हैं।
जितना सच अभी तक सामने आया है उसके अनुसार इन्होंने करोड़ों अवैध तरीके से बनाए और खजाने को चूना लगाया। यीडा ने ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ने वाले 165 किलोमीटर लंबे एक्सप्रेस वे के आसपास विकास गतिविधियों के लिए मथुरा के सात गांवों में 57.15 हेक्टेयर भूमि के लिए 85.49 करोड़ रुपये का भुगतान किया था।
आरोप है कि यीडा के तत्कालीन सीईओ पीसी गुप्ता ने अपने रिश्तेदारों और सहयोगियों के साथ मिलकर एक आपराधिक साजिश के तहत सबसे पहले किसानों से जमीन खरीदी और बाद में इसकी खरीद के चार से छह महीनों के भीतर इसे यीडा को ऊंची कीमत पर बेच दिया। हालांकि यीडा ने अपनी आंतरिक जांच में सरकारी खजाने को 126 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था, लेकिन प्राथमिकी में 85.49 करोड़ रुपये का जिक्र किया गया है। गुप्ता 2013-15 के दौरान सीईओ थे।
वह यीडा में अतिरिक्त सीईओ और डिप्टी सीईओ के पद पर भी रहे थे। 2013-2015 में जब भूमि खरीदी गई थी तब सपा उत्तर प्रदेश की सत्ता में थी। यीडा की जांच में ही पूरा मामला सामने आ गया था और उसी के आधार पर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की थी।
जिसके जिम्मे परियोजना को ईमानदारी से पूरा करना है अगर वही लूट की अगुवाई करने लगे तो फिर होगा क्या? मामले के न्याय की हम सब प्रतीक्षा करेंगे। लेकिन यह एकमात्र ऐसा मामला नहीं है। छोटी-बड़ी परियोजनाओं में भी आम दृश्य यही है। तो प्रश्न यही है कि देश को इससे मुक्ति कैसे मिलेगी?
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