झूठ की नसीहत क्यों
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने की मंजूरी देने के दूसरे दिन से ही विपक्षी दलों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
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हालांकि लोकतंत्र में सरकार की नीतियों का शांतिपूर्ण विरोध करना संवैधानिक अधिकार है। भारतीय संविधान भी अपने नागरिकों को यह अधिकार देता है। यहां तक तो बात ठीक है, लेकिन जब कोई राजनीतिक या सामाजिक कार्यकर्ता सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए लोगों से सरकार की एजेंसियों को गलत सूचनाएं देने की अपील करता है, तो इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने लोगों से इसी तरह का आह्वान किया है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने वाले अधिकारी आपके घरों तक जाकर आपका नाम, पता और अन्य जानकारियां एकत्रित करेंगे। आप संबंधित अधिकारी को दूसरा नाम बता दें। अर्थात आप झूठ बोलने की नसीहत दे रही हैं। जाहिर है कि अरुंधति रॉय इस तरह की अपील करके संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रही हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। सवाल है कि क्या लोगों के बीच इस तरह का आह्वान करके वह सरकारी कामकाज में बाधा नहीं डाल रही हैं। प्रत्येक दस वर्षो के बाद देश की जनसंख्या की गिनती की जाती है, और इसे अद्यतन भी किया जाता है। यह रूटीन का काम है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए 2010 में डाटा एकत्रित किया गया था। गृह मंत्री अमित शाह ने देशवासियों को आस्त किया है कि एनपीआर और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के बीच कोई संबंध नहीं है। लेकिन अरुंधति रॉय का गृह मंत्री के वक्तव्य पर भरोसा नहीं है। गृह मंत्री के किसी वक्तव्य पर भरोसा करना या न करना किसी भी नागरिक का व्यक्तिगत मामला हो सकता है, लेकिन देश के नागरिकों के बीच जाकर उनसे अपना नाम और पता गलत बताने के लिए आह्वान करना क्या कानून सम्मत है। हर्गिज नहीं। ताज्जुब तो इस बात पर होता है कि अरुंधति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बीते रविवार को रामलीला मैदान की रैली में एनआरसी प्रक्रिया के बारे में झूठ बोलने का आरोप लगाया लेकिन दूसरी ओर उन्होंने खुद नागरिकों को झूठ बोलने के लिए प्रेरित किया। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अरुं धति रॉय जैसी सुप्रसिद्ध लेखिका को इस तरह के आह्वान से बचना चाहिए।
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