ठीक नहीं हिंसा
नागरिकता संशोधन के खिलाफ प्रदर्शनों का सिलसिला खासकर हिंदी प्रदेशों उत्तर प्रदेश और बिहार में हिंसक हो उठा है।
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हिंसा जायज नहीं है, चाहे वह किसी भी तरफ से हो रही हो। न प्रदर्शकारियों की ओर से, न पुलिस की ओर से क्योंकि जो जानें जा रही हैं, उनकी भरपाई किसी भी दलील से नहीं की जा सकती। खासकर पुलिस को तो ज्यादा ही सावधानी और सतर्कता बरतने की जरूरत है। इसलिए जवाबदेही जितनी प्रदर्शनकारियों की है कि वे अहिंसक तरीके से अपना विरोध जताएं, उतनी ही पुलिस और प्रशासन की होनी चाहिए कि वह लोगों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल करने का पूरा मौका दें।
हिंसा को लेकर कई तरह की कहानियां और खबरें चल रही हैं। यह भी गौरतलब है कि इससे भी बड़े-बड़े जुलूस, मार्च वगैरह देश भर के तमाम राज्यों में जारी हैं लेकिन कहीं कोई हिंसक या उग्र प्रदर्शनों की खबरें नहीं आ रही हैं। कुछ खास राज्य ही हैं, जहां ये घटनाएं हो रही हैं।
इन जगहों पर सरकारी तंत्र का रवैया भी अलग दिख रहा है। मसलन, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा तो मंगलुरू में मारे गए दो व्यक्तियों के परिवारों से मिले और उन्हें दिलासा दिलाया तथा सरकार की ओर से मकान बनाने और राहत राशि देने का वादा किया मगर हिंदी प्रदेश के मुख्यमंत्री ऐसी चेतावनियां जारी कर रहे हैं, जो लोकतंत्र में किसी पैमाने पर सही नहीं कही जा सकता।
यही नहीं, वहां का प्रशासनिक अमला संदेह में संपत्तियां सील करने की कार्रवाई भी शुरू कर चुका है। सही है कि सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान नहीं होना चाहिए, लेकिन खुद सरकारों और प्रशासनिक हलकों का रिकॉर्ड इस मामले में क्या है, यह भी गौर किया जाना चाहिए। किंतु प्रदर्शनकारियों को भी संयम बरतने की जरूरत है और उन्हें ऐसे तत्वों पर निगाह रखने की जरूरत है जो उनकी पांत में उपद्रव फैलाने की नीयत से घुस आता है।
उन्हें यह एहसास भी होना चाहिए कि हिंसा की वजह से उनके विरोध का असली संदेश खो जाता है। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि तमाम विश्वविद्यालयों में छात्रों के अहिंसक प्रदर्शन का संदेश अधिक गहरा दिख रहा है। अहिंसक प्रदर्शनों का ही असर हो सकता है कि एनडीए सरकार के सहयोगी दलों के स्वर भी बदलने लगे हैं। लेकिन प्रशासन को भी संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है। जो भी हो, हिंसा नहीं होनी चाहिए।
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