सीएए पर सुप्रीम फैसला
सर्वोच्च अदालत के नागरिकता संशोधन कानून, 2019 (सीएए) पर लगभग महीने भर बाद विचार करने के फैसले पर जाहिर है, राय बंटी हुई है।
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प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे, न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायाधीश सूर्यकांत की पीठ ने इस कानून पर स्थगन आदेश जारी करने से भी इनकार कर दिया। अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस देने के साथ यह भी कहा कि वह इसके ब्यौरे मीडिया पर प्रसारित करे, ताकि इसको लेकर उलझनें और अस्पष्टता दूर हो सकें। यह सही है कि इतने गंभीर और पेचीदा मसले पर जल्दबाजी में नहीं, संजीदगी से विचार किए जाने की जरूरत है।
एक अपीलकर्ता की ओर से पेश हुए जाने-माने वकील तथा संविधानविद राजीव धवन ने भी कहा कि स्थगन की फौरी जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि यह कानून अभी अमल में नहीं आया है। लेकिन देश भर में इसके खिलाफ उठी आवाजें और विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला जरूर तात्कालिक भरोसा बहाली की मांग करता है। जहां तक सरकार का सवाल है तो उसका शीर्ष नेतृत्व यह बार-बार दोहरा रहा है कि वह इस कानून के लिए चट्टान की तरह टस से मस होने को तैयार नहीं है। मगर विरोध में अब तक देश भर के 38 उच्च शिक्षा संस्थानों के छात्र सड़कों पर उतर चुके हैं।
इसके अलावा दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों पर सख्त पुलिसिया कार्रवाई के खिलाफ अमेरिका समेत कई देशों की विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन चल रहा है। इस कानून पर कई विशेषज्ञ चिंताएं कर चुके हैं। किंतु सरकार का संकेत है कि यह विरोध कुछ राजनैतिक पार्टियों से प्रेरित है। यह दलील मान भी ली जाए तो जिस कानून से संविधान के कुछ मूल विचारों के बदलने की आशंका हो, उसमें अल्पमत को भी आस्त करना लाजिमी होना चाहिए। शायद इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का दायित्व बढ़ जाता है।
विरोध वाले तबके की विविधता और गंभीरता का अंदाजा इससे भी हो जाता है कि अब तक 59 अर्जियां पहुंच चुकी हैं जबकि कुछ और की तैयारी चल रही है। यही नहीं, देश भर में और खासकर पूर्वोत्तर और असम में आंदोलनों को जो सिलसिला चल पड़ा है, उससे 80 के दशक के उग्र असम आंदोलन की याद ताजा हो उठती है। ये सब वजहें तत्काल सुनवाई की दलील को पुष्ट करती हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ही आखिरी दरवाजा है जो भरोसा बहाली कर सकता है। खैर! महीने भर बाद ही सही, संजीदा और जल्द सुनवाई की उम्मीद की जानी चाहिए।
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