अयोध्या फिर अदालत में
अयोध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका की शुरु आत का पहला अर्थ यही है कि मुस्लिम पक्षकारों का एक वर्ग हर संभव कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने पर अडिग है।
अयोध्या फिर अदालत में |
वास्तव में 9 नवम्बर के फैसले के साथ ही मुस्लिम समाज की ओर से दो तरह की आवाजें आने लगी थीं। एक पक्ष मामले को पूर्ण विराम देने की बात कर रहा था तो दूसरा फैसले में दोष ढूंढ रहा था। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का रु ख फैसले को लेकर आलोचनात्मक था। दोनों संगठनों के कई नेताओं ने स्पष्ट कहा था कि वो पुनर्विचार याचिक लेकर जाएंगे। हालांकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने निर्णय किया कि वह पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा। अच्छा होता कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैसले को सब मान लेते। बहरहाल, दो याचिकाएं आ गई हैं, कुछ याचिकाएं और आएंगी। मामले में मूल पक्षकार रहे एम. सिद्दीकी के कानूनी वारिस तथा उप्र जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अशद रशीदी ने फैसले के 14 बिंदुओं पर पुनर्विचार याचिका दायर की है।
हालांकि जमीयत के अंदर भी इस मामले में दो राय थी। अरशद मदनी गुट भारी पड़ा। उन्होंने पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक के दिन कहा था कि हम जानते हैं कि हमारी याचिका खारिज हो जाएगी लेकिन हम न्यायालय में जाएंगे अवश्य। बोर्ड ने अपनी रणनीति के तहत कुछ और पक्षकारों को भी तैयार किया। हालांकि याचिका को गइराई से देखा जाए तो इसमें जो भी प्रश्न उठाए गए हैं, न्यायालय ने उन सबका जवाब दिया है। न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर माना है कि मस्जिद खाली जगह पर नहीं बनाई गई थी और हिन्दू वहां लगातार पूजा करते रहे। देखना होगा न्यायालय पुनर्विचार याचिकाओं पर क्या फैसला देता है। देश के बहुमत की सोच थी कि 491 वर्ष के संघर्ष का उच्चतम न्यायालय ने सही तरीके से अंत कर दिया है, इसलिए अब इसको यही खत्म किया जाए। किंतु कुछ लोगों की महत्ता और राजनीति के कारण मामला फिर न्यायालय में आ रहा है। पुनर्विचार याचिका दायर करना पक्षकारों का अधिकार है लेकिन यह किसी व्यक्ति या परिवार का दीवानी मामला नहीं है। करोड़ों की आस्था तथा भावना से जुड़ा है। बहरहाल, अब यह मामला फिर न्यायालय के पाले में आ गया है तो उम्मीद करनी चाहिए कि इस पर भी जल्द फैसला होगा।
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