राफेल पर सुप्रीम कोर्ट
राफेल विमान मामले पर उच्चतम न्यायालय के दोनों फैसले नरेन्द्र मोदी सरकार का नैतिक बल बढ़ाने वाले हैं।
राफेल पर सुप्रीम कोर्ट |
न्यायालय द्वारा उस पुनर्विचार याचिका को खारिज किया जाना जिसमें उसकी मॉनिटरिंग में पूरे सौदे की जांच की मांग की गई थी, उन सारे लोगों की पराजय है जो इसे लेकर पिछले करीब तीन वर्षो से तूफान उठाए हुए थे। वैसे न्यायालय ने पिछले वर्ष दिसम्बर में ही जांच कराने की याचिका खारिज कर दी थी। उसमें उसने विस्तार से कारण भी बताए थे। खरीद प्रक्रिया को लगभग सही पाया था, ऑफसेट के बारे में कहा था कि इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं तथा कीमत के बारे में कहा कि हमने यद्यपि उसके दस्तावेज भी देखे हैं पर कीमत तय करना न्यायालय का काम नहीं है।
कायदे से उसी समय इस विवाद का अध्याय बंद हो जाना चाहिए था। लेकिन उसके बाद तरह-तरह के दस्तावेज कुछ चुनिंदा अखबारों में आने लगे। फिर पुनर्विचार याचिका दायर हुई और इस पर बहस हुई। प्रधानमंत्री पर विशेष हित से सौदे में विशेष अभिरु चि लेने तक का आरोप लगा। अब उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि उसे सौदे में ऐसा कुछ नहीं दिखा जिसकी जांच की जरूरत हो। कम से कम अब यह अध्याय बंद हो जाना चाहिए।
राहुल गांधी ने उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्विचार याचिका स्वीकार करने के बाद कहा था कि अब तो न्यायालय ने भी मान लिया कि चौकीदार चोर है। यह बिल्कुल गलतबयानी थी और न्यायालय की स्पष्ट अवमानना भी। इस मामले में उनके पास दो ही विकल्प थे-माफी मांग लें या सजा भुगतें। उन्होंने पहला विकल्प चुना और न्यायालय ने माफीनामा स्वीकार करते हुए इतना ही कहा कि आगे से कोई बयान देने में सतर्कता बरतें। राफेल विवाद मामले से साफ हो गया है कि अगर सरकार के अंदर दृढ़ता नहीं हो तो भारत में रक्षा तैयारियां और आधुनिकीकरण के लिए सौदा करना और उसे अंतिम मुकाम तक ले जाना कितना कठिन है।
भारत की रक्षा चुनौतियां बढ़ रहीं हैं, और उसकी तुलना में वर्षो से उपयुक्त रक्षा तैयारियां व्यवहार में जड़ता की स्थिति में थीं। मोदी सरकार ने रक्षा महकमे और विशेषज्ञों की राय का मूल्यांकन कर इस दिशा मे आगे बढ़ना शुरू किया और इसके परिणाम आ रहे हैं। रक्षा सौदों पर सक्रिय लोग सतर्क रहें यहां तक तो बात समझ में आती है लेकिन न्यायालय एवं मीडिया को आधार बनाकर उसे बाधित करने की सीमा तक चले जाना देश-विरोधी हरकत है। हम चाहेंगे कि आगे से ऐसा न हो।
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