अस्वीकार्य व्यवहार
अधिवक्ताओं और पुलिस के बीच हुई हिंसा संपूर्ण देश में चर्चा और क्षोभ का कारण बनी हुई है।
![]() अस्वीकार्य व्यवहार |
चर्चा इस मायने में कि कानून के रक्षक और कानून की व्याख्या करने वाले ही अगर आपस में इस ढंग से हिंसा करने लगें तो आम आदमी के लिए कानून के राज की क्या स्थिति होगी? वकील समुदाय बुद्धिजीवी वर्ग माना जाता है। जिस तरह से वकीलों ने हिंसा और अराजकता पैदा की, पुलिस वालों को पीटा और सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान का जो दृश्य पैदा किया उसमें कहीं भी नहीं लग रहा था कि भारत का एक प्रबुद्ध और समझदार वर्ग हमारे सामने है।
अगर पुलिस की गलती भी थी तो उसका प्रतिकार यह नहीं हो सकता। पूरा घटनाक्रम निंदनीय है। भारत में अनेक अवसर आए हैं, जब वकीलों और पुलिस के बीच भिड़ंत हुई है, और दुर्भाग्य से हर बार पुलिस वाले तो जरूर सजा पाए हैं। चाहे निलंबन के रूप में या बर्खास्तगी के रूप में लेकिन कभी किसी वकील को इसके लिए सजा हुई हो इसके उदाहरण शायद ही मिलते हों। सोचिए, एक अपराधी इस तरह पुलिस को पिटते हुए देखेगा तो उस पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
कल अपराधियों और अराजक तत्वों का समूह पुलिस टीम पर हमला करने लगे तो कानून व्यवस्था की क्या स्थिति होगी? पुलिस व्यवस्था में अनेक दोष हैं। पुलिस का व्यवहार भी अनेक बार अपराधी जैसा होता है। लेकिन इस मामले में वकीलों की ओर से अति हुई है। आप संख्या बल के आधार पर पुलिस वाले को देखते ही पीटने लगिए यह कौन सा व्यवहार है? पुलिस का सड़क पर उतरना सामान्य स्थिति नहीं है। अगर पुलिस को आंदोलन करना पड़े तो कानून व्यवस्था की रक्षा कौन करेगा? ऐसे अनेक चिंताजनक प्रश्न इस टकराव से पैदा हुए हैं।
बार काउंसिल ने वकील समुदाय से कानून के पालन की अपील की है। बार काउंसिल ने विस्तार से भले कुछ नहीं कहा है, लेकिन उसकी अपील बहुत कुछ कह देती है। हमारा मानना है कि वकील समुदाय अपनी जिम्मेदारी समझे। किसी भी स्थिति में ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं हो सकता। साफ है कि कानून बिना किसी भय के अपना काम करे तभी देश में सही संदेश जाएगा। प्रश्न यही है कि ऐसा होगा क्या? आखिर, वकील समुदाय खुलेआम अपराध करते दिख रहे हैं। अगर उनको न्याय के कठघरे में नहीं खड़ा किया गया तो यह न्याय नहीं होगा और न ही इसे कानून का राज कहा जाएगा।
Tweet![]() |