ये दमघोंटू हवा!

Last Updated 05 Nov 2019 12:09:06 AM IST

भरी दोपहरी में अंधेरा और दमघोंटू हवा! ये कुछेक दशक पहले तक मुहावरे हुआ करते थे, जो कल्पनातीत स्थितियों और विडंबनाओं के लिए प्रयोग किए जाते थे।


ये दमघोंटू हवा!

लेकिन आज हकीकत हैं। दिल्ली और राजधानी क्षेत्र में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को चेतावनी जारी करनी पड़ी कि वायु प्रदूषण के मानक एक्यूजे का स्तर बेहद घातक है। स्वस्थ आदमी के लिए भी जानलेवा है, जिन्हें सांस या फेफड़े की तकलीफ है, उन्हें तो बेहद बच के रहना ही है।

हवा क्यों खराब हुई, यह अब बेहद सामान्य जानकारी का हिस्सा है। आज दोष किसानों पर मढ़ा जा रहा है कि पराली जलाने से दिल्ली और राजधानी क्षेत्र के लोगों का जीवन दूभर हो गया है। लेकिन यह भी लगभग स्वीकृत तथ्य है कि यह उसी आधुनिक विकास का नतीजा है जिसकी अगुआई अपने देश में यही राजधानी करती है और पंजाब, हरियाणा या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन्हीं हिस्सों से यह धुआं उठ रहा है, जो हरित क्रांति, औद्योगिक क्रांति तथा आधुनिक विकास और जीवन-शैली के लिए जाने जाते हैं। जाहिर है, किसानों को दोष देने से काम नहीं चलेगा।

इस इलाके में गाड़ियों, आधुनिक उपकरणों, प्रदूषणकारी उद्योगों, बेतहाशा निर्माण गतिविधियों ने हवा को इतना प्रदूषित कर रखा है कि थोड़ा-सा अतिरिक्त धुआं भी जानलेवा स्थितियां पैदा कर देता है। फिर, किसानों को भी पराली के वैकल्पिक उपयोग के बारे में बताने की कोई योजना ही नहीं सोची गई। पहले पराली बेकार नहीं होती थी, किसान के तरह-तरह के उपयोग में आती थी लेकिन आधुनिक विकास ने उस उपयोग को खत्म कर दिया तो उनके पास उसे जलाने का ही विकल्प बचा। इसका यह मतलब नहीं है कि विकास की दिशा में नहीं बढ़ना चाहिए, बल्कि किसी भी दिशा में बढ़ने के साथ उसके दुष्प्रभावों को सोचकर उपाय किए जाने चाहिए।

आधुनिक विकास के जनक यूरोपीय देशों में भी ऐसी स्थितियां आई थीं लेकिन उन्होंने इसका प्रबंधन किया। कुछ दशक पहले लंदन की हवा ऐसी ही जानलेवा हो गई थी। मगर वैकल्पिक उपायों से उसे सुधारा गया। चीन की राजधानी बीजिंग भी ऐसी स्थिति का सामना कर चुकी है। तो क्या हम सीख ले सकते हैं। दिल्ली सरकार देश में सर्वाधिक वाहनों वाले शहर में गाड़ियों के प्रबंधन के लिए ऑड-ईवन नंबरों के फॉर्मूले पर चल रही है। यह तात्कालिक उपाय हो सकता है पर दीर्घकालिक उपाय तो गाड़ियों को कम करने से ही संभव है। तो हमें विचार करना चाहिए कि इसे कैसे ठीक किया जाए।



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