आसियान और भारत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में सोलहवें भारत-आसियान सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा है कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ हमारी हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) नजरिये का अहम हिस्सा है, और आसियान इसके केंद्र में है।
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हालांकि भारत आसियान का सदस्य नहीं है, लेकिन आसियान देशों की भू-राजनीतिक और सामरिक स्थिति इस बात पर बल देती है कि नई दिल्ली इन देशों के साथ मजबूत रिश्ता रखे। इस क्षेत्र में चीन अत्यधिक सक्रिय है, और लगातार अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है।
चीन के वर्चस्व बढ़ाने के प्रयासों को प्रभावहीन बनाने और इस क्षेत्र में संतुलन कायम करने की दृष्टि से भारत का आसियान देशों के साथ रणनीतिक रिश्ते मजबूत करना अति आवश्यक है। भारत का आसियान के सदस्य देशों के साथ जमीन, वायु और समुद्री संपर्क बढ़ाने से क्षेत्रीय व्यापार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। आसियान 10 देशों का समूह है, जिसमें इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रूनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया शामिल हैं।
भौगोलिक रूप से ये सभी देश भारत और चीन, दोनों के करीब हैं, लेकिन सांस्कृतिक रूप से वियतनाम को छोड़कर ज्यादातर आसियान देश भारत के ज्यादा करीब हैं। भारत अपनी ‘लुक ईस्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के तहत आसियान देशों के साथ जुड़कर अपने आर्थिक, सामरिक और राजनीतिक रिश्ते मजबूत कर रहा है। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आसियान के सभी सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया था।
सभी राष्ट्राध्यक्ष गणतंत्र दिवस पर उपस्थित भी हुए थे, जो क्षेत्रीय शक्ति के रूप में भारत की पहचान की तस्दीक करता है। इस सोलहवें भारत-आसियान सम्मेलन की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर यह माना जा सकता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका को आसियान नेताओं ने पहली बार रेखांकित किया है। भारत को चाहिए कि वह आने वाले समय में इस संगठन को एकीकृत और आर्थिक रूप से गतिशील बनाने की दिशा में आने वाली बाधाओं से आसियान नेताओं को अवगत कराए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी है कि एकीकृत और आर्थिक रूप से गतिशील आसियान भारत के हित में है।
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